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________________ २८२ 17... किसी प्रकार का भेद नहीं रहता। भारी-हल्का, खारा-मीठा, गन्दा-साफ-सभी प्रकार का जल वाष्प बन जाने पर एकल्प हो जाता है। जल में विजातीय पदार्थ के संयोग से भिन्नता होती है, और उस संयोग के हट जाने पर भिन्नता दूर हो जाती है । इसी प्रकार विजातीय द्रव्य का संयोग हटते ही सब प्रात्मानों का ज्ञान और सभी आत्माएं समान हो जाती हैं। उनमें किसी प्रकार की. : विलक्षणता नहीं रहती। ::: : गौतम स्वामी शुद्ध प्रात्मस्वरूप के अधिकारी बन गए। हमें भी प्रारमचिन्तन द्वारा आत्मा को शुद्ध स्वरूप में परिणत करना है। गौतम के शुद्धि से .. हमें सीख लेनी है । ज्ञान के द्वारा अपने निज गुणों को शुद्ध बनाना है। यह शुद्धता सम्यक् श्रद्धा और ज्ञान से ही प्राप्त हो सकती है। • बन्धुनो, 'सत्पुरुषों का जीवन प्रदीप के समान है जो स्वयं प्रकाशित होता है और दूसरों को भी प्रकाशित करता है । साधारण मानव मिथ्या धारणाओं.. और गलत शक्तियों के उपयोग के कारण यों ही समाप्त हो जाता है। आयु .. का तेल पाकर जीवन की वत्ती जलती रहती है, मगर कोई-कोई वत्ती होली. का काम कर जाती है । दीपक फटाके, बीड़ी, सिगरेट अथवा दूसरों की वस्तुओं , को जलाने के काम भी आ सकता है, किन्तु दीपक का यह सही उपयोग नहीं है । वह दूसरों को जला कर स्वयं भी खत्म हो जाता है। एक, दीपक वह भी. होता है जो पठन-पाठन में और पथिकों को पथ दिखलाने में काम आता है।.. वह दीपक बुझ जाता है तो पथिक उसे याद करते हैं कि रात में भी उसने दिन । के समान सुविधा दी । यह जीवन भी जलते दीपक के समान है। इससे प्रकाश : . प्राप्त करना चाहिए-अपने लिए तथा औरों के लिए। ... भगवान महावीर 'लोकप्रदीप' थे। वे स्वयं प्रकाशमय थे. और समस्त .. जगत् को प्रकाश देने वाले थे। उस लोकोत्तर प्रदीप ने संसार को , सन्मार्ग प्रदर्शित किया, कुमार्ग पर जाने से रोका और अज्ञान के अधिकार का निवा:.... रण किया । किन्तु वह प्रदीप, इस.लोक में नहीं रहा, उसको स्मृति ही हमारे : . .. . . ... . . . . लिए शेष रह गई है।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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