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________________ ( ૨૦૨ परिणाम उत्पन्न करता है, जब कि सर्प आदि का विष एक ही भव को नष्ट करता है या नहीं भी नष्ट करता । : शरीर में कांटा चुभने पर पीड़ा होती है, विष भक्षण करने से मृत्यु हो जाती है, विषैले जन्तु के डंसने से दुःख होता है, किन्तु इनका उपचार संभव है। सैकड़ों मील दूर के तीन-तीन दिन विष लगे हो जाने पर भी गारुड़ी उसके प्रभाव को नष्ट कर देता है । मनोवल और मंत्रवल की ऐसी शक्ति श्राज भी देखी-सुनी जाती है। झाड़ने फूंकने वाले, समाचार कहने वाले को ही झाड़-फूंक कर विष उतार देते हैं। आज भी जंगल में रहने वाले वन्य जाति के लोग विष उतारने का तरीका जानते हैं । इस प्रकार इस बाह्य विष को उतारना प्रासान है । किन्तु काम, क्रोध, माया, लोभ आदि के विष को परम गारुडी ही हल्का कर सकता है। वासना का घोर विष जन्म-जन्मान्तर तक हानि पहुँचाता है । इस विष के प्रभाव को दूर करने के लिए साधक भगवान् महावीर की साधना का लाभ प्राप्त करते हैं । श्रमावस्या को महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त कर लिया । उनका इस धरती पर सरीर अस्तित्व नहीं रहा । मानों मध्यलोक का सूर्य सदा के लिए ग्रस्त होगया । किन्तु उनका उपदेश ग्राज भी विद्यमान है । भगवान् का स्मरण करके और उनके उपदेश के अनुसार ग्राचरण करके हम ग्रन भी प्रपने जीवन को उच्च, पवित्र एवं सफल बना सकते हैं। हमें ग्राज के दिन भगवान के पावन संदेशों पर गहराई के साथ विचार करना चाहिए । छोटा और पुराना मकान भी पोत लेने, साफ कर लेने से रमणीक लगने लगता है | दीवाली के अवसर पर लोग ऐसा करते हैं । तन की शोभा के लिए स्नान किया जाता है, साबुन लगाया जाता है, सुन्दर स्वच्छ वस्त्राभूषण धारण किये जाते हैं । मन्दिर का आदर देव के कारण है । देव के बिना मन्दिर श्रादरणीय नहीं होता। इसी प्रकार इस शरीर रूपी मन्दिर की जो भी शोभा या महत्ता है, वह श्रात्म- देव के कारण है । घर की शोभा बढ़ाई जाय मगर घर में रहने वाले नर की ओर ध्यान न दिया जाय, यह बहुत बड़ा प्रमाद है,
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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