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________________ २१८] किसी भी भूखे को रोटी देना पाप है। मगर यह व्याख्या प्रमाद या पक्षपति से प्रेरित है । यह साम्प्रदायिक अाग्रह का परिणाम है। इस प्रकार की व्याख्या करने से दया, अनुकम्पा और करुणा भी पाप हो जाएगा। यह अर्थ दयाप्रधान जैन परम्परा से विपरीत है। पालतू कुत्ते को खाना देना पाप नहीं है। यहां हिंसा द्वारा कमाई करने की वृत्ति नहीं है । भूखे कुत्ते को या अन्य पीड़ित जीवों को अन्न आदि देना अनुकम्पा की प्रेरणा है । क्षुधा, पिपासा, अशान्ति और पानि मिटाने में जो अनुकम्पा की भावना होती है, वह पुण्य है। उसे कर्मादान में सम्मिलित नहीं समझना चाहिए । कर्मादानों का सम्बन्ध विशिष्ट पापकर्मों के साथ है। श्रुत का गंभीर और सम्यग्दृष्टिपूर्वक अध्ययन किया जाय तो इस प्रकार की गलतफहमी नहीं हो सकती । श्रृत हमारे लिए मार्गदर्शक है। उसी से कृत्यअकृत्य का भेद ज्ञात होता है। अगर श्रत रूपी निधि हमारे पास न होती तो · इसका अाधार लेकर हम हेय उपादेय का विवेक कैसे करते ? जैसे नेत्रहीन पुरुष को वीहड़ बन में मार्ग नहीं मिलता और वह इधर से उधर ठोकरें खाता और टकराता है, वही दशा श्रु त ज्ञान के अभाव में हमारी होती। आध्यात्मिक जीवन को पालोकित करने वाले शास्त्र ही हैं । शास्त्र से आन्तरिक प्रकाश प्राप्त होता है । इसी कारण श्रृत का संरक्षण महत्त्वपूर्ण कर्तव्य माना गया है। . प्राचार्य संभूतिविजय ने शास्त्ररक्षा के कार्य को महान् और शासन के अभ्युदय के लिए अनिवार्य मान कर उसके संरक्षण की योजना की। जब बारहवें अंग दृष्टिवाद का प्रश्न उपस्थित हुआ तो भद्रवाहु स्वामी की ओर ध्यान गया। दूसरी बार फिर उनकी सेवा में मुनियों को भेजा गया। उन्होंने संघ का संदेश उन्हें कह सुनाया। संघ ने इस बार मार्मिक शब्दों में संदेश प्रेषित किया था-संघ बड़ा है या ध्यान बड़ा है ? बुद्धिमान् को इशारा काफी होता है । महान् शानी भद्रवाहु स्वामी ने संघ के संकेत को समझ लिया और यह भी जान लिया कि संघ मेरे उत्तर से
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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