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________________ | २१७ सकता, जीवित नहीं रह सकता । पानी सोने से भी अधिक मूल्यवान है। प्यास से जिसका कंठ सूख गया है और प्राण कंठ में अटके हैं वह पानी के लिए सोने ___ की डलियां फेंक देगा। इतने मूल्यवान् पदार्थ जल का मानव को 'दुरुपयोग' नहीं करना चाहिए। लालच के वशीभूत हो कर पानी को सुखाना तो स्व-पर दोनों के लिए हानिप्रद और घोर हिंसा का कारण है अतएव विवेकशील श्रावक ऐसे अनर्थकारी धंधे को कदापि नहीं अपना सकता। (१५) असतीजनपोसणया कम्मे-कुछ गिरोह ऐसे होते हैं जो लड़कियों को उड़ा ले जाते हैं और उन्हें पाल-पोस कर व्यभिचार जैसे घृणित कर्म में लगा देते हैं । यह कितनी लज्जाजनक बात है। कई नीच व्यक्ति अपनी लड़की को शादी नहीं करते और उसे स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने दिया जाता है। कई लोग व्यभिचारिणी स्त्रियों को रख कर अड्डे चलाते हैं। किन्तु इस प्रकार के असामाजिक, अनैतिक और अधार्मिक कार्य कर के अर्थ-लाभ करना महानीचता और निन्दनीय कृत्य है। इससे द्रव्याहिंसा भी होती है और भावहिंसा भी। ऐसा करने वाले लोग सदाचार के भयानक शत्रु हैं, समाज के कोढ़ और पापों के प्रवल प्रचारक हैं । धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र तो एक स्वर से इस प्रकार के कल्पों का विरोध करते ही हैं, पर सरकारी कानून भी इनका विरोधी है । संसार का कोई भी सत्पुरुष ऐसे नीच कर्म का समर्थन नहीं कर सकता। इसी प्रकार हिंसक जन्तुओं का पालन करके उनसे जीव-वध करवा कर आजीविका चलाना भी अत्यन्त क्रूरतापूर्ण एवं निन्दनीय कर्म है। शिकारी बाज, कुत्ते आदि का पालन ऐसे ही पापकर्म के लिए किया जाता है। जो लोग घोर अज्ञानान्धकार में निमग्न हैं, जिन्हें धर्म और नीति का प्रकाश नहीं मिला है, जिन्हें संतसमागम का सुयोग भी प्राप्त नहीं हुआ है, ऐसे लोग यदि घोर कर्मबंधकारक ऐसे कर्म करें तो कदाचित् क्षम्य है, किन्तु सद्गृहस्थ इन कुकृत्यों में कैसे प्रवृत्त हो सकता है ? . . . . कई लोग 'असतीजनपोषण' में थोड़ा-सा फेरफार करके 'असंजतीजनपोषण' कर देते हैं और कहते हैं कि संयमी जनों अर्थात् साधुओं के अतिरिक्त
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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