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________________ . २११] .. ___यह तत्त्व मुझे मिला है और मुझे आत्म सन्तोष है कि मक्का शरीफ अव यहीं दीख रहा है। तात्पर्य यह है कि जो साधक अन्तर्मुख हो जाता है और अपने मन को अपनी आत्मा में ही लीन कर लेता है, उसे अपने अन्दर ही भगवत्स्वरूप के दर्शन होने लगते हैं । अहिंसा और सत्य उसके जीवन में उतर पाता है। खोजा को तत्त्व मिला कि किसी प्राणी को न सताना, किसी पर हुकूमतः.. मत करना। यही धर्म का तत्त्व महावीर स्वामी ने भी बतलाया है। यह धर्मतत्त्व सदा काल था, है और रहेगा। इस तत्त्व को शास्त्र के माध्यम से ही ... समझाया जाता है। मनुष्य भाषा के माध्यम से ही अपने हृद्गत विचार दूसरों.... तक पहुँचाता है। महर्षियों के अनुभव जनित विचार एवं भाव साहित्य-श्रुत .. के माध्यम से ही युगों-युगों से चले आ रहे हैं । अतएव महर्षियों के महत्त्व के ... समान श्रत का भी महत्त्व है। प्राचार्य संभूति विजय ने श्रुत की रक्षा का संकल्प किया और अनेक श्रुतधर मुनियों के सहयोग से श्रृ त का संकलन किया फलस्वरूप ग्यारह अंग: व्यवस्थित हो गए। जब दृष्टिवाद नामक वारहवें अंग का प्रश्न उपस्थित.. हुआ तो महामुनि भद्रबाहु की ओर ध्यान आकर्षित हुआ.। निश्चय किया गया । कि श्री संघ की ओर से प्राचार्य भद्रबाहु को बुलाना चाहिये ताकि अपूर्ण कार्य: पूर्ण हो सके । .. ..... .. . भद्रबाहु स्वामी उस समय नेपाल में थे। चरण विहारी होते हुए भी जैन साधु बहुत दूर-दूर तक भ्रमण किया करते हैं । उसका परिभ्रमण अन्य अटन प्रिय लोगों के समान नहीं होता । दूसरे कई लोग साईकिल से भी विदेश यात्रा करते हैं । पर साधु की यात्रा निराली होती है । वे सम्बल के रूप में आटा मेवा या अन्य कोई वस्तु नहीं रखते । न कोई. गाड़ी आदि साथ रखते, सन्निधि अर्थात् दूसरे दिन के लिए कोई भी भोजन सामग्री रखना तो. . उनके लिए बहुत बड़ा दोष है । संग्रह करना गृहस्थों का काम है, साधु कल की। चिन्ता नहीं करता। वह पक्षी के समान सर्वथा परिग्रह हीन होता है । वासी बल क
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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