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________________ अमंगल कर्म श्रमण भगवान् महावीर ने नानाविध सन्तापों से संतप्त संसारो नोवों के कल्याण के लिए, मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया। वह मोक्ष मार्ग अनेक प्रकार से प्रतिपादित किया गया है। ज्ञान और क्रिया रूप से विविध मोक्ष मार्ग है, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान सम्यक्चरित्र ऐसे तीन तीन और सम्यग्दर्शन श्रादि तीन के साथ तप यों चार प्रकार से मोक्ष मार्ग है । इस प्रकार शब्द और विवक्षा में भेद होने पर भी मूल तत्त्व में कोई भेद नहीं है, विसंगति नहीं है। . ज्ञान और दर्शन में प्रभेद की विवक्षा करके 'ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्षः ' कहा जाता है । भेद विवक्षा करके 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः ' ऐसा कहा जाता है। यहां तप को चरित्र के अन्तर्गत कर लिया गया है । तप निर्जरा का प्रधान कारण है, अतएव उसका महत्त्व प्रदर्शित करने के लिए जब पृथक् निर्देश किया जाता है तो शास्त्रकार कहते हैं नाणं च दंसणं चैव चरित ं च तवो तहा । एस मग्गोत्ति पण्णसो, जिहि वरदसिंह || अर्थात् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जिनेन्द्र भगवान् ने ज्ञान, दर्शन, चरित्र श्रीर तप को मोक्ष का मार्ग कहा है । मोक्ष मार्ग का निरूपण चाहे मेद विवक्षा से किया जाय चाहे प्रभेद विवक्षा से, एक बात सुनिश्चित है और वह यह है कि सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्राप्त होना चाहिये | जिसने सम्यग्दर्शन पा लिया, समझना चाहिये कि उसने अपने जीवन में आध्यात्मिकता की नींव मजबूत करली। उसमें पर्दा हटा देने की शक्ति आगई है। उसकी भूमिका सुदृढ़ हो गई है । *
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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