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________________ [१६६ अनुभव करना चाहिये कि वह जिनधर्म का प्रतिनिधि है और उसके व्यवाहर से धर्म को नापा जाता है, अतएव ऐसा कोई कार्य उसके द्वारा न हो जिससे लोगों को उसकी और उसके द्वारा धर्म की आलोचना करने का अवसर प्राप्त हो । .. . iकेश वाणिज्य में समस्त द्विपदों और चतुष्पदों का समावेश होता हैं। अतएव किसी भी जाति के पशु या पक्षी को बेचं कर लाभ उठाना श्रावक के लिए निषिद्ध हैं। . . .. ... . . . . . . . ... : पूर्वोक्त पांच व्यवसायों के लिए 'वाणिज्य' शब्द का प्रयोग किया गया है, क्योंकि यहां उत्पादन नहीं किया जा रहा है, उत्पन्न वस्तु को खरीद कर बेचना ही वाणिज्य कहलाता है। यहां इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि पशुओं की अनावश्यक संख्या बढ़ जाने से, उनको सम्भाल सकने की स्थिति न होने से या ऐसे ही किसी दूसरे कारण से अपने पशु को बेच देना केश वाणिज्य नहीं कहलाएगा। केश वाणिज्य तभी होगा जब मुनाफा लेकर वेच देने की दृष्टि से ही कोई पशु पक्षी खरीदा जाय और फिर मुनाफा लेकर वेचा जाय । श्रावक इस प्रकार का व्यापार नहीं करेगा । . ऊन या बाल अधिक समय तक पड़ें रहें तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं, अतएव उनका व्यापार निषिद्ध कहा जाता है, ... द्विपद और चतुष्पद का व्यापार करने वाला उनकी रक्षा का विचार नहीं करेगा। उनकी सुख-सुविधा के प्रति लापरवाह रहेगा और उन्हें कष्ट में डाल देगा। जो इस विचार को लोग ध्यान में रवळगे वे वेकार पशुओं को वेचकर कल की धार उतारने के पाप से बच जाएंगे। .. अजमेर की घटना है। किसी व्यक्ति का घोड़ा लंगड़ा हो गया । वह सवारी के कान का न रहा। घोड़े के स्वामी ने उसे गोली मार देने का इरादा किया, किन्तु रीयां वाले रोठ मगनमल जी को जब यह विदित हुया तं' उन्होंने पालन करने के लिए जो ले लिया और दयापूर्वक उसका पालन किया। वे
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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