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________________ १८] होगा और किसको बेचने से वह पारामं पाएगा। जो जानवरों को बेचने का धन्धा करता है और पशुओंों के बाजार में लेजा कर उन्हें बेचता हैं। वह उपयुक्त अनुपयुक्त ग्राहक का विचार न करके अधिक से अधिक पैसा देने वालों को ही बेच देता है । ग्रदल-बदल करने वाला कुछ हांनि उठा कर बेच सकता है मगर लाभ उठाने की प्रवृत्ति वाला क्यों हानि - सहन करेगा ? प्राय यह है कि प्राणियों का विक्रय करना अनेक प्रकार के अनर्थो का कारण है । अतएव ऐसे अनर्थकारी व्यवसाय को व्रत धारण करने वाला श्रावक नहीं करता । श्रावक ऐसा कोई कर्म नहीं करेगा जिससे उसके व्रतों में मलीनता उत्पन्न हो। वह व्रतबाधक व्यवसाय से दूर ही रहेगा और अपने कार्य से दूसरों के सामने सुन्दर आदर्श उपस्थित करेगा। व्रत ग्रहण करने वाले को ग्रड़ौसी- पड़ौसी चार-चक्षु से देखने लगते हैं, अतएव श्रावक ऐसा धन्धा न करे जिससे लोकनिन्दा होती हो, शासन का अपवाद या अपयश होता हो और उसके व्रतों में बाबा उपस्थित होती हो । धर्म के सिद्धान्तों का वर्णन शास्त्रों में किया जाता है किन्तु उसका मूर्त एवं व्यावहारिक रूप उसके अनुयायियों के प्राचरण से ही प्रकट होता है । साधारण जनता सिद्धान्तों के निरूपण से अनभिज्ञ होती है, अतः वह उस धर्म के अनुयायियों से ही उस धर्म के विषय में अपना खयाल बनाती है ! जिस धर्म के अनुयायी सदाचारपरायण, परोपकारी और प्रामाणिक जीवन यापन करते हैं, उस धर्म को लोग अच्छा मानते हैं और जिस धर्म को मानने वाले नीति एवं सदाचार से गिरे होते हैं उस धर्म के विषय में लोगों की धारणा ग्रच्छी नहीं बनती । साधु सन्त कितना ही सुन्दर उपदेश दें, धर्म की महिमा का बखान करें और वीतराग प्रणीत धर्म की उत्कृष्टता का प्रतिपादन करें, मगर जब तक गृहस्थों का व्यवहार ग्रच्छा न होगा तब तक सर्व साधारण को वीतराग धर्म की उत्कृष्टता का खयाल नहीं था. सकता । अतएव अपने आचरण को श्रेष्ठ बनाना भी धर्म प्रभावना का एक अंग हैं। प्रत्येक गृहस्थ को यह ..
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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