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________________ १६० ] . इस अपेक्षा से हल और कुदाली चलाने वाला छोटी हिंसा करता है। वाह्य हिंसा करता है । किन्तु वचनों द्वारा हृदय फोड़ने वाला दो चार की नहीं, हजारों की हिंसा भी कर सकता है। अतः हर कार्य में विवेक की आवश्यकता है। सच्चा व्रती साधक वह है जो हाथों-पैरों के साथ अपनी वाणी और इन्द्रियों को भी वश में रखता है। ऐसा साधक ही अहिंसा सत्य आदि का निर्वाह करके आदर्श जीवन व्यतीत कर सकेगा। साधक के लिए आवश्यक है कि वह जीवन के आन्तरिक रूप (विचार) और बाह्म रूप (आचार-व्यवहार) को एक-सा संयममय बनाए रखे। जैसी उत्तमता वह बाहरी व्यवहार में दिखलाता है वैसी ही उसके अन्तःकरण में होनी चाहिए । बड़े से बड़ा प्रलोभन होने पर भी उसे फिसलना नहीं चाहिए। जो मनुष्य भोगोपभोग में संयम नहीं रखता वह प्रलोभनों का सामना नहीं कर सकता । प्रलोभन उसे डिगा देते हैं और कर्तव्य से च्युत कर देते हैं । उसको साधना विफल हो जाती है । भगवान् महावीर ने ऐसी सुन्दर आचारनीति का उपदेश दिया है कि जिससे जीवन के लिए आवश्यक कोई कार्य भी न रुके. और आत्मा बन्ध से लिप्त भी न हो। दूसरों का सफाया कर दो, सर्वस्व लूट लो, इत्यादि विचार दूसरों ने लोगों के समक्ष रखे और भय एवं हिंसा के आश्रय से पापों को मिटाने का प्रयत्न किया किन्तु महावीर स्वामी ने कहा-यह गलत तरीका है । हिंसा से हिंसा नहीं मिटाई जा सकती,पाप के द्वारा पापका उन्मूलन नहीं हो सकता। रक्त से रंजित वस्त्र को रक्त से धोकर स्वच्छ नहीं किया जा सकता। जिस बुराई को मिटाना चाहते हो उसी का आश्रय लेते हो, यह तो उस बुराई को मिटाना नहीं है बल्कि उसकी परम्परा को चालू रखना है । हिंसा, परिग्रह, भ्रष्टाचार और बेईमानी को मिटाना चाहते हो और उन्हीं का सहारा पकड़ते हो, यह उलटी वात. है। . . . . . . : .. .. . . . श्रीमन्तों को गोली मार दो और उनका धन लूट., लो, क्योंकि ऐसा करने से गरीबों की गरीबी मिट जाएगी और मुनाफाखोरों का अन्त हो
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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