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________________ - . (४) भाड़ी कम्मे ( भाटी कर्म )-यह चौथा कर्मादान है । बैल, हाथी, ऊंट, घोडा, गधा, खच्चर, आदि जानवरों के द्वारा भाड़ा कमाना या प्राजीविका निर्वाह के लिए इन्हें भाड़े पर चलाना भाडीकम्मे कर्मादान कहलाता है । जब इन पशुओं के द्वारा भाड़ा कमाने का लक्ष्य होता है तो इनके संरक्षण और सुख सुविधा की बात गौण हो जाती है । भाड़े का लोभी स्टेशन से बस्ती तक चलने वाले तांगे-घोड़े को दूर-दूर ग्रामों तक ले जाने को तैयार हो जाता है और शीघ्र से शीघ्र मंजिल तय करने के लिए उसे कोड़ों से पीटता और भागने की शक्ति न होने पर भी भागने को बाध्य करता हैं। जिसके पैर जवाब दे चुके हों, जिसको अपने शरीर का भार वहन करना भी कठिन हो रहा हो, जो चलते चलते हांफ गया हो, ऐसे जानवर पर भार लाद कर जब मार-मार कर चलाया और दौड़ाया जाता है, तब उसको कितनी व्यथा होती होगी ? ऐसा व्यवहार अत्यन्त करतापूर्ण है किन्तु भाड़े की आजीविका करने वाला शायद ही इससे बच सकता है । प्राते हुए पैसे को ठोकर मार कर जानवर की सुखसुविधा का विचार करने वाले विरले ही मिलेंगें। सामान्यव्यक्ति, जिसने सम्यग्दृष्टि प्राप्त नहीं की है, ऐसा कार्य करे तो समझ में आ सकता है; क्योंकि उसमें करुणाभाव का अभाव होता है. मगर सम्यग्दृष्टि श्रावक ऐसा नहीं करेगा। अगर करता है तो उसका व्रत सुरक्षित नहीं रह सकता। अतएव व्रती श्रावक को भाड़े की इस प्रकार की आजीविका नहीं करनी चाहिए। जीवन निर्वाह के लिए बड़े पाप करने की क्या आवश्यकता है ? जिसने परिग्रह का परिमारण कर लिया है, और अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर लिया है, वह अल्पारंभ से ही अपना काम चला सकता है। उसके जीवनव्यवहार के लिए घोर पाप की आवश्यकता ही नहीं होती। आज बैलगाड़ी घोडागाड़ी आदि की संख्या कम हो गई है। यंत्रों द्वारा चलने वाली गाड़ियों ने उनका स्थान ग्रहण कर लिया है। कुछ लोगों की ऐसी दृष्टि है कि मोटर में चलने से पाप नहीं होता। तांगे की अपेक्षा मोटर की सवारी को . लोग अच्छा समझते हैं । उसमें धन की और समय की बचत समझते हैं। शान
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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