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________________ पहा . [१३१ काबू पाना असंभव नहीं है । बार-बार प्रयत्न करने से अन्ततः उस पर काबू पाया जा सकता है । किसी उच्च स्थान पर पहुँचने के लिए एक-एक कदम ही . आगे बढ़ना पड़ता है। आपका मन जो बेनगाम घोड़े की तरह दौड़ भाग कर रहा है, उसे काबू में लाने का यही उपाय है । साधक को सजग रह कर उसका मोड़ बदलना चाहिए। .. आँख की पुतली जैसे ऊपर-नीचे होती रहती है वैसे ही मन भी दौड़ता रहता है और कहीं मोह की सहायता उसे मिल जाय तब तो कहना ही क्या है ? वह बहुत गड़बड़ा जाता है । मगर गड़बड़ाये मन को भी काबू में लाया जा सकता है। . मानव जीवन में मन का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह साधन का प्रधान आधार है, क्योंकि वही उत्थान एवं पतन का कारण है। कहा भी है ___ मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्ध और मोक्ष का प्रधान कारण मन ही है। जो मन को जीत लेता है, इन्द्रियां उसकी दासी बन जाती है। अतएव मनोविजय के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिए । धर्म-शिक्षा या अभ्यास एवं वैराग्य के द्वारा मन को वशीभूत किया जाता है। कभी-कभी दीर्घकाल तक कठिन साधना करने वालों को भी मन विचलित कर देता है और साधना से डिगा देता है। सिंह गुफावासी मुनि की साधना मामूली नहीं थी। मगर उनका मन मचल गया। स्थूलभद्र के प्रति ईर्षा उसने जगाई और उनके समकक्ष प्रतिष्ठा पाने की लोभ वृत्ति उत्पन्न कर . दी। मुनि असावधान होकर उसके चक्कर में आ गए । रूपाकोशा के द्वार पर पहुँचे और उसे सन्तुष्ट करने के लिए रत्न कंबल प्राप्त करने को चल दिए। व्रत-नियमों की साधना को भूल गए। वह साध्य अर्थात् काम विजय को सिद्ध. करने के संकल्प से चले थे परन्तु साधन उलटा हो गया। रत्नकंबल को वह साधन मान बैठे।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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