SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य अपने को सर्व श्रेष्ठ सामर्थ्यशाली और जीवजगत् का सम्राट ... समझता है, मगर सम्राट् सदा सम्राट नहीं बना रहेगा, एक समय ऐसा आ सकता है जब उसे रंक की स्थिति में आना पड़े। मनुष्य को कीट, पतंग और वनस्पति आदि के रूप में भी जन्म लेना पड़ता है। उस समय यह सर्व श्रेष्ठ सामर्थ्य कहाँ पायोगे? इस अल्प- कालीन वर्तमान वैभव की चका चौंध में अनन्त भविष्य को क्यों आँखों से अोझल कर रहे हो ? जो अपने को विशिष्ट सामर्थ्यशाली समझता है उसमें भविष्य को देखने का भी सामर्थ्य होना चाहिए न ! - इन सब स्थितियों को यथावत् जानकर देशविरत श्रावक पाप से भय मानता है । अज्ञान व्यक्ति ही पाप से नहीं डरते। पाप का भय भाव में है। बदनामियां लोक-परलोक का भय तो मोह के कारण होता है। पाप का भय आत्मा की निर्मलता को उत्पन्न करता है, वह उत्थान का कारण है। कई लोग पाप से तो नहीं डरते किन्तु अपयश और अपवाद से डरते हैं। ऐसे लोग जीवन को उच्च कक्षा पर आरूढ़ नहीं कर सकते। उनमें एक प्रकार की लोकैषणा है । जव अपवाद एवं अपयश की संभावना न हो तो उनकी पाप में प्रवृत्ति भी हो सकती है । अतएव पाप से भयभीत न होकर केवल लोकापवाद से भयभीत होने वाला साधक सफल नहीं होता । जो पापमय को प्रधान और लोकमय को गौण समझता है, वही साधक उत्तम माना जाता है । सिंह गुफावासी, सर्प की बामी पर साधना करने वाले और कुंए की पाल पर अप्रमत्त रहने वाले मुनियों ने भय को जीता, प्रमाद को जीता और पापमय को भी बचाया, अतएव वे अपनी साधना में सफल होकर गुरुचरणों में पहुंचे। अध्यवसायों की तीन अवस्थाएं होती हैं-(१) वर्द्धमान (२) हीयमान और (३) अवस्थित । चित्त की परिणति या तो उच्च से उच्चतर दशा की ओर बढ़ती हुई होती है या नीचे की ओर गिरती हुई होती है अथवा. अवस्थित अर्थात् ज्यों की त्यों स्थिर रहती है। उत्तम कोटि के साधक वर्द्धमान स्थिति में रहते हैं और मध्यम श्रेणी के अवस्थित कोटि में। उत्तम कोटि के
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy