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________________ [६७ जाते हैं। इससे अनेक रोगों की भी उत्पत्ति होती है । अन्यान्य खाद्य वस्तुओं में भी नियत समय के पश्चात् जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । अतएव गृहस्थों को, विशेषतः बहिनों को इस विषय में खूब सावधानी बरतनी चाहिए। खाने के लिए उपयोग करने से पहले प्रत्येक खाद्य पदार्थ को बारीकी से जांच कर लेना चाहिए । बहुत बार खाद्य वस्तु में विकृति तो हो जाती है परन्तु देखने वाले को सहसा मालूम नहीं होती। अतएव वस्तु के वर्ण, गंध आदि की परीक्षा कर लेनी चाहिए। अंगर वर्ण गंध आदि में परिवर्तन हो गया हो तो उसे अखाद्य समझना चाहिए । अगर खान-पान संबंधी मर्यादा पर पूरा ध्यान दिया जाय और बहिनें विवेक एवं यतना से काम लें तो बहुत-से निरर्थक पापों से बचाव हो सकता है और स्वास्थ्य भी संकट में पड़ने से बच सकता है। : . . मनुष्य बाहरी तुच्छ हानि-लाभ को सोचता है, मगर यह नहीं देखता कि समय बीत जाने के कारण यह वस्तु त्याज्य हो गई है । यदि इसका सेवन किया जागगा। तो कितनी हिंसा होगी, यह विचार बहुत कम लोगों को होता है। श्रावक श्राविका की दृष्टि पाप से बचने की होती है, आर्थिक हानि लाभ उसकी तुलना में गौरण होते हैं । अतएव जिस वस्तु का स्वाद बदल जाय, गंध बदल जाय और रंगरूप बदल जाय, उसे अभक्ष्य जान कर श्रावक कार्य में नहीं लेता-नही लेना चाहिए । विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न स्वभाव हैं। कोई वस्तु शीघ्र बिगड़ जाती है, कोई देर में बिगड़ती है । उनका बिगड़ना मौसम पर भी निर्भर है । अतएव सब चीजों के लिए कोई एक समय निर्धारित नहीं किया जा सकता । गृहस्थ यदि सावधान रहे तो अपने अनुभव से ही यह सब समझ सकता है। बहिनों को इस सम्बन्ध में खूब सावधान रहना चाहिए। .. (५) तुच्छ औषधिभक्षरण-भोजन करने का साक्षात प्रयोजन भूख को उपशान्त करना है। जिस वस्तु को खाने से वह प्रयोजन सिद्ध न हो, उसे नहीं खाना चाहिए । विवेकान् गृहस्थ यह लक्ष्य रखता हैं कि काम बने, भूख मिटे और वस्तु व्यर्थ न बिगड़े। सीताफल, तिन्दुककल आदि में बीज बहुत होते हैं। उनमें खाद्य अंश अत्यल्पहोता हैं। उनके खाने से शरीर निर्वाह
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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