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________________ पर काष्ठपात्र मुनि को कैसे दे सकेगा? हां तो यहां पहले भोजन संबंधी भोगोपभोग परिमाण व्रत. के पाँच अतिचार बताये हैं, जो इस प्रकार हैं- (१) सचित्ताहार-व्रत में त्यागी हुई सचित्त वस्तुओं का असावधानी या भ्रम के कारण सेवन करना सचित्ताहार नामक अतिचार है । इस अतिचार से बचने के लिए श्रावक को सदा सावधान रहकर त्यागी हुइ सचित्त वस्तुओं के सेवन से बचना चाहिए। (२) सचित्त से सम्बद्ध वस्तु का आहार--यदि कोई वस्तु अचित्त होते हुए भी सचित्त से प्रतिबद्ध है तो वह आहार के योग्य नहीं है, जैसे बबूल या किसी अन्य वृक्ष से गोंद निकाल कर उसका सेवन करना । अनेक परिपक्व वस्तुएं भी बर्फ आदि के साथ रखी जाती हैं जिससे अधिक समय सुरक्षित रह सकेजल्दी खराब न हो जाएं। दूध, दही, घृत आदि अचित पदार्थ हैं तथापि यदि सचित्त से सम्बन्धित हों तो उनको ग्रहण करना भी अतिचार है। (३) पूरी पकी नहीं, पूरी कच्ची भी नहीं-गृहस्थी में ऐसे भी खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं जो अधपके या अधकच्चे कहे जा सकते हैं। मोगरी आदि वनस्पतियों को तवे पर छोंक कर जल्दी उतार लिया जाता है। उनका पूरा परिपाक नहीं होता । उनमें सचित्तता रह जाती है। अतएव जो सचित्त का त्यागी है, उसके लिए ऐसे पदार्थ ग्राह्य नहीं हैं। उनके सेवन से व्रत दूषित होता है। ... :: . (४) अभिषवाहार-इसका अर्थ है सड़े-गले फल आदि का सेवन करना। ऐसे पदार्थों के सेवन से त्रसजीवों की हिंसा होती है और असावधानी में वे खाने में भी आ सकते हैं । प्रत्येक खाद्य पदार्थ की एक अवधि होती है तब तक वह ठीक रहता है। अधिक समय बीत जाने पर वह सड़ जाता है, गल जाता है या घुन जाता है। उसमें जीव-जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में वह खाद्य नहीं रहता । अधिक दिनों तक रखने से मिष्ठान्नों में भी जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं । वह न खाने योग्य रहते हैं और न खिलाने योग्य । पशुओं को भी ऐसी चीज नहीं खिलाना चाहिए। अनुचित लालच और अविवेक के कारण मनुष्य इन्हें खाकर या खिलाकर महा हिंसा के कारण बन
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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