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________________ 90 आध्यात्मिक आलोक . जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जए जिणे । एणं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ।। अर्थात् जो दस लाख सुभटों को दुर्जय संग्राम में जीत लेता है और दूसरा एक आत्मा को जीतता है तो वह परम जयी है । ऐसे साधक स्वर्गारोहण के पश्चात् संसार में अमरता छोड़ जाते हैं। एक छोटे से बीज को देखकर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि आगे चलकर यही विशाल वृक्ष बन जाएगा, जिसकी सुखद शीतल छाया में हजारों प्राणी अपने को शीतातप के कष्ट से मुक्त कर पाएंगे। किन्तु उसमें सभी आवश्यक संस्कार विद्यमान हैं, अतएव वह उचित सामग्री पाकर वृक्ष का विशाल रूप धारण कर लेता है । महामन्त्री शकटार और लाछलदे को जब स्थूलभद्र का जन्म हुआ तब क्या पता था कि आगे चलकर यही बालक एक महान् साधक होगा । शकटार ने स्थूलभद्र को राजनीति में निपुण बनाने के लिए रूपकोषा गणिका के यहां रखना चाहा । जैसे बच्चे गन्ने को चूसकर फेंक देते हैं वैसे ही गणिका रस, रूप एवं अर्थ को चूसकर अपने प्रेमी को ठिकाने लगा देती है, किन्तु रूपकोषा कुछ विलक्षण विचारों वाली थी। साथ ही स्थूलभद्र ने भी सुसंस्कारी होने के कारण बिना मान गणिका के घर जाना उचित नहीं समझा जैसा कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी कहा है आदर भाव विवेक बिना, वहि ठौर के त्याग कियो चहिये । जिनसे अपनी मर्जी न मिले, उनसे निर्लेप सदा रहिये । प्राणहिं जाय कुसंग तजो, सत्संग से प्रेम सदा लहिये । सत्संग मिले न जहां तुलसी वहि, ठौर को पंथ नहीं गहिये ।। मन में जाने की इच्छा नहीं होते हुए भी, पितृ आज्ञा का पालन करने के लिए स्थूलभद्र रूपकोषा के भवन की ओर चल दिये । आकृति, प्रकृति, चाल-ढाल और वाणी आदि से मनुष्य की योग्यता जान ली जाती है। रूपकोषा ने ऐसे हजारों व्यक्तियों की परीक्षा की थी, इसलिए राजमार्ग पर चलते स्थूलभद्र को भी उसने दूर से ही पहिचान लिया तथा दासी को भेज कर उनको बुलवाया, मगर स्थूलभद्र ने दासी की बात नहीं मानी और कहा कि यदि तुम्हारी स्वामिनी स्वयं बुलाने को आवे तो आ सकता हूँ । आज रूपकोषा ने अर्थ के बजाय गुणों की कद्र की और वह स्वयं स्थूलभद्र को बुलाने आयी; उसने सामने आकर घर में पधारने का निवेदन किया और बोली कि जीवन का अनुभव लीजिए और ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग कीजिए।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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