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________________ आध्यात्मिक आलोक 89 आज साधना का रूप जीवन से निकाल दिया गया है, जिससे आवश्यकताएं अनियन्त्रित हो गई हैं । व्रतों और नियमों को केवल दस्तूर के रूप में न लेकर आत्मा को कसने का उनसे काम लिया जाय, तो वास्तविक लाभ हो सकता है। खाने-पीने की वस्तुओं, सम्पदा, भूमि, वस्त्र और अलंकार आदि हर एक के परिमाण में यह लक्ष्य रखना है कि नियम दिखावे के लिए, दूसरे के कहने पर या नाम के लिए नहीं, वरन् आत्मा को ऊपर उठाने एवं जीवन को उज्ज्वल बनाने के लिए करना है । देश काल तथा परिस्थितियों को देखकर यदि कोई आदमी अपनी परिधियों को सोचे तथा पराधीनता की स्थिति में हो तो व्रत में छूट रखना उचित भी हो सकता है, किन्तु साधारण स्थिति में यदि कोई गलियां रखे तो समझना चाहिए कि उसे अभी व्रत की सही दृष्टि प्राप्त नहीं हुई है। . साधना के क्षेत्र में व्रत करते समय तीन उद्देश्यों को सदा ध्यान में रखना चाहिए । इन तीनों का पारस्परिक गहरा सम्बन्ध है जैसे () हिंसा घटाने के लिए (२) कुछ नियम अविरति रोकने के लिए (३) कुछ स्वाद जय तथा जितेन्द्रियता की साधना के लिए होते हैं । गृहस्थ आनन्द ने इन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आत्मिक शान्ति प्राप्त की थी। __ आनन्द की गुणगाथा गाने मात्र से हमारा काम नहीं चलेगा, किन्तु स्वयं की साधना करनी पड़ेगी । आनन्द अपने पर शासन करता हुआ आनन्दित था । हर एक साधक जब आनन्द के जैसे आत्म-नियन्त्रण में आनन्द लेगा, ममता को काट सकेगा, तभी वह वास्तविक आनन्द प्राप्त कर सकेगा। साधक का लक्ष्य शरीर से भी ममता हटाने तथा कामनाओं को वश में करने का होना चाहिए । साधक अभ्यास द्वारा धीरे-धीरे मन पर पूर्ण अधिकार कर सकता है । कई शक्तिशाली पहलवान अभ्यास द्वारा छाती पर हाथी चढ़ा लेते हैं। जब शरीर बल द्वारा ऐसा असंभव संभव हो सकता है तो आत्मा का बल शरीर बल से कम नहीं है । आत्म-बल के द्वारा काम, क्रोध, लोभ आदि को भी वशीभूत किया जा सकता है, केवल पौरुष जगाने भर की देर है । मानसिक कमजोरी को हटाइए तो व्रत करने के मार्ग में आपके कदम स्वयं आगे बढ़ते जाएंगे। संसार में अनेक प्रकार के शूर हैं-युद्ध शुर, कर्म शूर, दान शुर, वाकशूर, तथा कलह शूर आदि-आदि । किन्तु हमें तो साधना शूर या तप शुर चाहिये । अपने ऊपर नियन्त्रण करने वाला, राग-द्वेष को जीतने वाला क्षमाशील साधक शूरों का भी शूर महावीर कहलाता है। कहा भी है
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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