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________________ 85 आध्यात्मिक आलोक मध्ययुग में तो दासदासी रखने की प्रथा थी चाहे जरूरत हो या नहीं । आनन्द ने इसका भी परिमाण कर लिया । क्योंकि दास के साथ अनात्मभाव से काम लेना अहिंसा के विपरीत यानि धार्मिकता के विरुद्ध है । आनन्द के सैंकड़ों दास थे । आज कुछ लोग नौकर रखकर यह तर्क उपस्थित करते हैं कि हम मजदूर लोगों का पालन करते हैं । ऐसी दुहाई देने वाले कहां तक सच कहते हैं यह उनका हृदय जानता है। आज के कारखाने स्वार्थ के लिए चलते हैं या लोकपालन के लिए ? इसका जवाब तो स्वयं से पूछना चाहिए । जिन घरों में संस्कार अच्छे होते हैं, वहां के बच्चे भी धर्म-भावना से सदा प्रेरित रहते हैं, अतः हर गृहस्थ को अपने अमर्यादित लोभ पर नियन्त्रण करना आवश्यक है । कहा भी है: अति लोभो न कर्तव्यः, लोभो नैव च नैव च । अति लोभी प्रसादेन, सागरः सागरं गतः ।। जिस प्रकार एक मोटरगाड़ी है जिसकी तेल वाली टंकी में पेट्रोल तो डाला गया किन्तु पानी की टंकी में पानी नहीं डाला तो ऐसी गाड़ी में यात्रा करना खतरे से खाली नहीं होगा । ऐसे ही जीवन की यात्रा में व्रत नियम के जल की टंकी भी आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना जीवनरूपी गाड़ी को भयंकर खतरा हो सकता है। धनी घरों में बच्चे प्रारम्भ से ही अर्थ की छुट्टी पीते हैं । अतः श्रीमन्त घरों के बच्चों में अनायास धर्म की ओर प्रवृत्ति नहीं हो पाती । ऐसे बच्चों के मन में सदा धनोपार्जन की कामना रहती है। उनमें सेवा देने वाले, धर्मभावना वाले लोग बहुत कम मिलते हैं, क्योंकि मन में सेवा की रुचि जगाने के लिए परिग्रह पर नियन्त्रण आवश्यक है । घर के जन-जन में अर्थ रुचि देखने वाला बच्चा सेवा रुचि या धर्म. रुचि वाला कैसे हो सकता है। इसके लिए समाज के प्रति प्रेम होना आवश्यक है। गुणियों के प्रति यदि आदरभाव जागृत हो तो समाजसेवी भी मिल सकेंगे । राजिया कवि ने कहा है : "गुण औगुण जिण गांव, सुणे न कोई साभले । उण नगरी विच नाह, रोही भलो रे राजिया ।। (रोही-जंगल) कोई व्यक्ति धर्म के लिए समाजसेवा या प्रचार में अपना समस्त जीवन लगा दे फिर भी समाज यदि उसके प्रति आदर न करे तो ऐसे व्यक्ति की सत्प्रवृत्ति आगे कैसे बढ़ेगी? कोई सोना, चांदी भूमि-भवन, पशुधन आदि परिग्रह की अपेक्षा यदि गुणों
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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