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________________ 84 आध्यात्मिक आलोक नियमन की पट्टी लगानी आवश्यक होती है । आनन्द गाथापति ने भगवान् महावीर स्वामी के समक्ष इसीलिये इच्छा परिमाण का व्रत स्वीकार किया । यदि मन का नियमन नहीं किया गया तो मन में कभी शान्ति नहीं रहेगी । जिसने सम्पदा पर बाह्य दृष्टि से तो परिमाण किया है किन्तु इच्छा पर नियमन नहीं किया तो उसे सच्ची शान्ति प्राप्त नहीं होती और उसका व्रत धारण भी विधिपूर्वक नहीं समझा जाएगा । इसीलिए परिग्रह परिमाण का दूसरा नाम शास्त्र में इच्छा परिमाण भी रखा है । जब इच्छा की सीमा होगी तो मन में आकुलता नहीं रहेगी । आनन्द के पास बारह करोड़ की सम्पदा तथा चालीस हजार का पशुधन था। वह अपनी बढ़ी हुई सम्पदा की बेल को सीमा के अन्दर रखना चाहता था, इसीलिए उसने संकल्प किया कि भगवान् ! इस वर्तमान सम्पदा से अधिक का मैं संचय नहीं करूंगा । वस्तुतः इच्छा पर नियन्त्रण होने से सहज ही त्याग की ओर मन बढ़ता है, जिससे जीवन में एक अलौकिक आनन्दानुभव होता है, जो धन के लिए सतृष्ण होने पर कभी संभव नहीं । आनन्द ने पांचवें व्रत में नौ प्रकार के परिग्रह १. खेत २. वस्तु ३. धन ४. धान्य ५ हिरण्य ६ सुवर्ण ७. दास-दासी ८. पशु और ९ गृह-सज्जा आदि अन्य सामान का परिमाण किया । १ - खित याने खुले मैदान की भूमि खेत आदि (२) - वास्तुक याने गृह प्रासाद आदि यथा-घर, गौशाला, घुड़शाला, हाट-हवेली आदि । वस्तु परिमाण के सम्बन्ध में आनन्द ने नियम किया कि वर्तमान में जितने मकान हैं उनसे अधिक अब नहीं बढ़ाऊंगा । इस प्रकार का व्रती दैववश प्राप्त होने वाली नयी सम्पत्ति, दान, पुरस्कार या अन्य किसी भी प्रकार की ऐसी सम्पत्ति से अपने को विमुख रखेगा जिसके चलते कि आज जगह-जगह महाभारत का श्रीगणेश होता है । जब तक मनुष्यों के मन में सन्तोष का रूप स्थिर नहीं होता तब तक सरकार द्वारा किया गया नियमन एवं लाखों का व्यय भी व्यर्थ ही जंचता है । इच्छा परिमाण के अन्तर्गत जो भावना निहित है वह शासनतन्त्र से प्राप्त नहीं हो सकती । " नौ परिग्रहों में से किसी परिग्रह में देश काल समय देखकर अधिक या कम नियन्त्रण की आवश्यकता पड़ती है । आज ऐसे बहुत सारे परिवार हैं जहां दास-दासी रखने की आवश्यकता नहीं होती । मनुष्य अपना काम आप कर लेता है और इसमें वह किसी प्रकार की हीनता का अनुभव नहीं करता । दास रखने की आवश्यकता काम की अधिकता, रोगी या कमजोरी की दशा एवं प्रभुता या बड़प्पन के प्रदर्शन करने यदि के लिए होती है। आज अधिकांश अल्पकालिक वेतनभोगी दास से काम चला जाता है । अपने करके दास-दासी थोड़े ही सम्पन्न लोग रख पायेंगे । किन्तु
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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