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________________ 78 आध्यात्मिक आलोक कोरी साक्षरता वाली सन्तान विपरीत हो जाने पर 'राक्षस' तुल्य बन जाती है-जैसे कि 'साक्षरा' शब्द को उलट देने से 'राक्षसा' शब्द बन जाता है । यही कारण है कि आज की साक्षरता के अनेक दुष्परिणाम देखे जा रहे हैं । तलाक की प्रथा से बात की बात में स्त्री-पुरुष को और पुरुष स्त्री को छोड़ देता है । पुत्र पिता पर मुकदमे चलाता है और स्त्री पति पर । यह उलट गंगा साक्षरों के द्वारा ही बहायी जाती है । फिर ऐसी साक्षरता किस काम की ? जो अपनी परम्परा, संस्कृति और मर्यादा का ध्यान नहीं रखे । कला विज्ञान के साथ यदि सदविद्या हो तो जीवन में सरसता रहेगी । सरस विद्वान् विरोधी होने की स्थिति में भी सरस ही रहेगा । . इसीलिए कहा है __ “सरसाविपरीताश्चेत, सरसत्वं न मुच्यन्ति।" सदगृहस्थ आनन्द ने जब भगवान् महावीर स्वामी के समक्ष इच्छा परिमाण का व्रत लिया, तब उसे सच्ची शान्ति मिली । इच्छा परिमाण के लिए अध्यात्म विद्या की आवश्यकता होती है जो आत्मा के महत्व और संसार की असारता का परिचय कराती है। आज के शिक्षण से संसार, दुष्प्रवृत्तियों का शिकार हो गया है । तरह-तरह की उद्दण्डताएं और असामाजिक आचरणों की प्रधानता से विद्यार्थी समाज बदनाम होता जा रहा है। अतएव, आज की शिक्षा को लोग शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं। यही कारण है कि आज के शिक्षण शास्त्रियों को यह मानना पड़ा है कि नैतिक और आध्यात्मिक विद्या के बिना छात्रों की अनुशासन हीनता कम नहीं हो सकती । यदि बच्चों में शिक्षा प्रणाली के माध्यम से सुसंस्कार डाले जायं, तो वे आदर्श-जीवन बनाने की कला सीख सकेंगे। यदि कोई स्वस्थ अवस्था में विकार से बचने की सजगता न रखे तथा रुग्ण हो जाने पर उपचार न करे तो इस असावधानी का परिणाम भयंकर हो सकता है। ऐसे ही समय रहते, बच्चों के सुसंस्कार के लिए यदि समाज तन, मन, धन नहीं लगाएगा तो इसके कटु-फल उसे अवश्य भोगने पड़ेंगे । पहले की सी विनम्रता, श्रद्धा, भातृत्व, शिष्यत्व और भक्ति आदि के भाव अब बहुत कम दिखाई देते हैं । अध्यात्म-विद्या की शिक्षा से यह कमी दूर की जा सकती है । माता-पिता का यह पुनीत कर्तव्य है कि बच्चों की सद्विद्या का उसी प्रकार ध्यान रखें, जैसे उनके भरण-पोषण का ध्यान रखते हैं । · महामन्त्री शकटार की धर्म-पत्नी लाछलदे ने अपनी सन्ततियों की सतशिक्षा का ऐसा समुचित प्रबन्ध किया था कि उनकी हर एक सन्तान अद्वितीय निकली । स्थूलभद्र
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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