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________________ 77 आध्यात्मिक आलोक धन कमाने का इल्म या हुनर जानने वाला विज्ञान रखता है परन्तु ज्ञान के अभाव में उसे सच्ची शान्ति नहीं मिलती । इस प्रकार की विद्या जो पेट पालने का केवल हुनर सिखावे वह मृग जलवत् है। जैसे ग्रीष्मकाल में तृषित मृग भ्रम में पड़कर झूठे जल के लिए दौड़-दौड़कर अपने प्राण दे डालता है वैसे ही मनुष्य अन्न के कणों के लिए चांदी या कागज के टुकड़ों के लिए दौड़-दौड़ कर अपना बहुमूल्य जीवन नष्ट कर डालता है । मन की लहरों के अनुसार मर्कट-नाच नाचने से क्या प्यास बुझ जायेगी ? नहीं, वह तो सद्विद्या के द्वारा ही बुझ सकती है और उससे अशान्त जीवन में सच्ची शान्ति आ सकती है | आनन्द पूर्व गृहीत चार व्रतों के पश्चात् पंचमत्त इच्छा परिमाण को स्वीकार करता है । किसी कवि ने ठीक ही कहा इच्छा के पीछे जग जाता, जिमि शरीर अनुगत छाया । जहां चाह है वहां राह है, यह परेश की है माया || . इच्छा मनुष्य को सतत अशान्त बनाए रखती है। संसार उसके पीछे वैसे ही दौड़ता है जैसे काया के पीछे छाया । जगत् में सब बातों की पूर्ति की जा सकती है। किन्तु इच्छा की पूर्ति संभव नहीं । जब तक मनुष्य अपने मन पर अंकुश नहीं लगाता, तब तक वह उसे विविध रूप से नचाती है, और सदा आकुल बनाए रखती है । ज्ञानवान मन को अपने वश में रखकर आत्म-शान्ति का सुखानुभव करता है । कहा भी है मन सब पर असवार है, मन का मता अनेक । जो मन पर असवार है, वह लाखन में एक ।। ज्ञान-बल न होने से मानव इच्छा पर नियन्त्रण नहीं कर पाता और रात-दिन आकुलता का अनुभव करता है । ज्ञान की बागडोर यदि हाथ लग जाय तो चंचल मन तुरंग को वश में रखा जा सकता है, इसके लिए सत्संगति और सुशिक्षा में प्रयत्न किया जाता है। वर्तमान काल में शिक्षा का बहुत प्रसार है और साक्षरता में भी अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हुई है, किन्तु साक्षरता तो साधन मात्र है, जिसके द्वारा ज्ञान के प्रवेश द्वार तक पहुँच सकते हैं । शास्त्रों के पठन-पाठन एवं भाव ग्रहण करने के लिए इसकी आवश्यकता है । मगर जैसे किसी प्रासाद के द्वार पर पहुँच कर यदि भोजनशाला में न पहुँचे, तो भूख ज्यों की त्यों बनी रहेगी । वैसे साक्षरता मात्र से शान्ति नहीं मिलती, वरन ज्ञान की प्राप्ति होने पर सदाचार पालन से ही शान्ति मिलती
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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