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आध्यात्मिक आलोक चलाते हुए मानव अक्षय पुण्य का भागी बनता है । जहां सौभाग्य से समाज में दोनों कार्यों को करने वाले होगे वहां धर्ममयता एवं शान्ति बनी रहेगी।
आज समाज में ऐसे अवकाशप्राप्त लोगों की आवश्यकता है जो नैतिक सुधार के साथ भावी प्रजा को धर्म शिक्षा दे, स्वाध्याय की प्रेरणा देकर युवकों में रुचि जागृत करे और लोक-मानस में ज्ञान की ज्योति जगा सके । गृहस्थ आनन्द और मुनि भद्रबाहु की-सी साधना का लक्ष्य हर मानव का हो तो सबका लोक और परलोक सुखमय बन सकता है।