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________________ 585 आध्यात्मिक आलोक सैलाना में २०३० वर्ष पूर्व से ज्ञानोपासना की रुचि रही है । मैं चाहता हूँ कि मेरे जाते-जाते आप लोग प्रतिज्ञाबद्ध होकर आश्वासन देंगे कि आप निरन्तर धर्म की सेवा करेंगे और जीवन को उच्च बनाएँगे । आप ऐसा करेंगे तो मुझे अतीव सन्तोष होगा। - जो कुछ खाया जाता है उसे पचाने से ही शरीर पुष्ट होता है । प्रवचनों द्वारा आपने जो कुछ ज्ञानसंग्रह किया है, उसका उपयोग करने का अब समय है । ऐसा करने से आपका जीवन सुखमय बनेगा । भूमि में वीज पड़ने से और अनुकूल हवा, पानी आदि का संयोग मिलने से अंकुर फूट निकलते हैं। भूमि में वीज जब पड़ता है तो भूमि उसे ढंक लेती है । आपके हृदय-रूपी खेत में धर्म के बीज डाले गए हैं, सिंचाई भी हो गई है । अब उन्हें सुरक्षित रखना और फल पका कर खाना यह हम आपके हाथ में छोड़ जाते हैं। अगर आप उन फलों का ठीक तरह से उपभोग करेंगे तो अपना जीवन सफल बना लेंगे। एक छोटा-सा व्यक्ति भी यदि बस्ती के कार्यों में रस ले तो दूसरे उसका अनुकरण करते हैं । सत्कर्म भी अनुकरणीय हैं। यहां साधुओं की वाणी को सुनने कृपकवन्धु तथा अन्य काम-काजी लोग भी आए । यदि सत्संग का क्रम निरन्तर चलता रहा तो ज्ञान सदा जागृत रहेगा। आज कोई विशेष नवीन बात नहीं कहनी है, पिछले दिनों कही गई बातों को ही सामान्य रूप से स्मरण कराना है और उनकी ओर सदा ध्यान रखने की प्रेरणा करनी है। आनन्द का श्रावकमार्ग आपके लिए ज्वलंत उदाहरण बने । ऊँचे कुल में जन्म लेने मात्र से कोई भक्त या ऊँचा नहीं होता, अच्छी करनी करने से भक्त बनेगा और ऊँचा कहा जाएगा । आरम्भ-परिग्रह का आकर्षण अनर्थों का मूल है । इसे नियन्त्रित करने का सदैव ध्यान रखना चाहिए । सदैव जीवन को संयममय बनाने का प्रयत्न करना चाहिए । राष्ट्रीय संकटकाल में यदि मानव संयम नहीं रखेंगा तो देश की महती हानि होगी । प्रदर्शन करने और महलों में सोये पड़े रहने के दिन लद गए। अब सादगी, स्वावलम्बन, श्रमशीलता, वैयक्तिक स्वार्थ के त्याग तथा धर्मसाधना के प्रति आदर का युग है। धर्म संजीवनी बूटी के समान सारे संसार के त्रास को नष्ट करने वाला है । धर्म से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का भी कल्याण होगा । ___ जिसके जीवन में सत्य, सरलता, श्रमशीलता और धर्मनिष्ठा आ जाती है, वह समाज में स्वतः आदरणीय बन जाता है । आनन्द का संयममय जोवन दूसरों के लिए
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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