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________________ 562 आध्यात्मिक आलोक . महाराज चेटक व्रतधारी श्रावक थे । मगर कोणिक के अत्याचार का प्रतीकार . करने का जब अन्य उपाय न रहा तो उन्हें सेना और शस्त्र का उपयोग करना पड़ा। इस समय शस्त्र न सँभाल कर अगर वह कायरता का प्रदर्शन करते तो अत्याचार बढ़ता, न्याय-नीति की जड़ें उखड़ जातीं और धर्म को भी बदनाम होना पड़ता। वर्णनाग नतुआ पौषधशाला में बैठे हुए आत्मसाधना कर रहे थे । बेले की तपस्या में थे । उसी समय उन्हें युद्धभूमि में जाने और युद्ध करने का आदेश मिला। वे कह सकते थे कि तपस्या कर रहा हूँ युद्ध के लिए नहीं जा सकता । मगर नहीं, वे विवेकशील साधक थे । उन्होंने ऐसा नहीं कहा | धर्म, अहिंसा और तपश्चर्या को कलंकित करना उन्होंने घोर अपराध समझा । युद्ध का आह्वान आने पर उनके मन में खेद नहीं हुआ । हिचक नहीं हुई । उन्होंने बेला के बदले तेला कर लिया और उसी समय युद्ध के लिए तैयार हो गए । देश रक्षा का आदेश मिलने पर जी चुराना उन्होंने पाप समझा । वे पौषधशाला से बाहर निकले और रथ तैयार करवा कर युद्ध के मोर्चे पर चल दिए। शास्त्रों के ये उल्लेख अहिंसा के स्वरूप को समझने में हमारे लिए बहुत सहायक हैं । इनसे स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा की गोद में कायरता को नहीं छिपाया जा सकता । अहिंसा कर्तव्यभ्रष्टता का समर्थन नहीं करती । अहिंसा के नाम पर अगर कोई देश की रक्षा से मुँह मोड़ता है, शस्त्र उठाने से इन्कार करता है, और अत्याचार को सहन करता है तो वह अहिंसा को बदनाम करता है । एक व्यक्ति जब शासन सूत्र अपने हाथ में लेता है या सेनापति का पद ग्रहण करता है तो देश और प्रजा की रक्षा करने का उत्तरदायित्व उस पर आ जाता है । किन्तु उस उत्तरदायित्व को निभाने का अवसर आने पर अगर अहिंसा की आड़ में उससे बचने का प्रयत्न करता है तो वह कायर है, उसे धर्मनिष्ठ नहीं कहा जा सकता। ' अत्याचार करना हिंसा है तो कायर बनकर अत्याचार सहना, अंत्याचार होने देना और उसका प्रतीकार न करना भी हिंसा है। . ___ यों तो श्रावक स्थूल संकल्पजनित हिंसा का त्यागी होता है किन्तु निरपराध की हिंसा का ही वह त्याग करता है । स्वरक्षा या देशरक्षा में होने वाली हिंसा का वह त्याग नहीं करता । उस समय भी उसका विचार रक्षा का ही होता है । हिंसा का अवलम्बन वह विवशता से करता है । वर्णनाग तपश्चर्या की स्थिति में भी युद्ध में संलग्न हो गया । युद्ध करते-करते जब देखा कि शरीर अब टिक नहीं सकता तो वह सावधान हो गया और
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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