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________________ 536 आध्यात्मिक आलोक सकता । जिनके पास हस्तलिखित ऐतिहासिक सामग्री है उन्हें चाहिए कि वे उसे प्रकाश में लावें और अन्वेषण कार्य को आगे बढ़ाने में सहायक बनें । जब आधुनिक काल के सन्तों का भी हम प्रामाणिक परिचय प्राप्त नहीं कर पाये तो प्राचीनकाल के सन्तों का तथ्यपूर्ण इतिहास खोज पाना कितना कठिन है, इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। भद्रबाहु स्वामी आदि प्राचीनकालिक महर्षि हैं । उनके सम्बन्ध में पूर्ण प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत होना चाहिए जहां तक भद्रबाहु का सम्बन्ध है, निःसंकोच कहा जा सकता है कि शासन सेवा में उनका योगदान असाधारण रहा है । स्थूलभद्र ने उत्कृष्ट संयमपालन का उज्ज्वल उदाहरण हमारे समक्ष प्रस्तुत किया | आचार्य संभृतिविजय के चरणों में रहकर उन्होंने अपूर्व काम विजय की । सिंह का रूप धारण करने की एक बार भूल अवश्य हो गई किन्तु दूसरी बार कभी भूल नहीं की। भद्रबाहु के पश्चात् कौन उनका उत्तराधिकारी हो ? इस प्रश्न पर जब विचार हुआ तो स्वयं भद्रबाहु ने कहा-"स्थूलभद्र ही उत्तराधिकार प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है । उनसे बढ़कर कोई परमयोगी नहीं है ।" इस प्रकार भद्रबाहु के बाद स्थूलभद्र ही उनके उत्तराधिकारी हुए। उन्होंने बड़ी योग्यता के साथ जिन शासन की सेवा की । यौगिक साधना के साथ श्रुत की भी साधना की । कहाँ राजसी जीवन वाला स्थूलभद्र और कहाँ परमकामविजेता स्थूलभद्र ! वह अपने महान् प्रयत्न से कहाँ से कहाँ पहुँच गए । मनुष्य जब पवित्र चित्त और दृढ़ संकल्प लेकर ऊपर चढ़ने का प्रयत्न करता है तो सफलता उसके चरण चूमती आज देश संकट में से गुजर रहा है । संकट भी साधारण नहीं है । प्रत्येक देशवासी को यह संकट महसूस करना चाहिए और उससे किसी भी प्रकार का लाभ उठाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए.। यह काल मुख्य रूप से 'राष्ट्र धर्म के पालन का है। देश की रक्षा पर हमारे धर्म, संस्कृति, साहित्य और शासन की रक्षा निर्भर है। अतएव इस ओर ध्यान रखकर शान्ति और धैर्य के साथ परिस्थिति का सामना करना योग्य है । संकट को दूर करने अथवा कम करने में जो जिस प्रकार का योग दे सकता हो, उसे वह देना चाहिए । ऐसे प्रसंग पर मिष्टान आदि का सेवन न करना, अनावश्यक खर्च न करना एवं विदेशी वस्तुओं का उपयोग न करना आवश्यक है । प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के संकट के समय हर तरह से अधिक से अधिक त्याग और बलिदान करे और अपनी आवश्यकताओं को कम करके संयत जीवन बनाने का प्रयत्न करे। ऐसा करने से अवश्य कल्याण होगा।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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