SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 543
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - आध्यात्मिक आलोक 535 रखनी पड़ती है । उसे व्यवहार निभाना होता है । उसका सम्बन्ध केवल श्रमणवर्ग, संघ और अपने भगवान्-आराध्य देव के साथ होता है । जनरंजन के स्थान पर जिनरंजन करना उसका लक्ष्य होता है । जिनरंजन के मार्ग से गड़बड़ाया कि उसके हृदय को बहुत क्षोभ होता है । कभी-कभी जीवन में एक दुविधा आ खड़ी होती है । हम दूसरे को राजी रखें अथवा उसका हित करें ? राजी रखने से उसका हित नहीं होता और हित करने जाते हैं तो वह नाराज होता है ? ऐसी स्थिति में किसे प्रधानता देनी चाहिए ? जिसके अन्तःकरण में तीव्र करुणा भाव विद्यमान होगा, एवं अपना स्वार्थ साधन जिसके लिए प्रधान न होगा, वह दूसरे को राजी करने के बदले उसके हित को ही मुख्यता देगा । हाँ, जिसे दूसरे से अपना मतलब गांठना है वह उसके हित का ध्यान न करके भी उसे राजी करने का प्रयत्न करता है, किन्तु जो निस्पृह है और लौकिक लाभ को तुच्छ समझता है, वह ऐसा नहीं करेगा । आवश्यकता होने पर डॉक्टर कड़वी दवा पिलाने में संकोच नहीं करता । भले ही रोगी को वह अप्रिय लगे तथापि उसका हित उसी में है। भद्रबाहु स्वामी के विषय में यही घटित हुआ । वे सब को राजी नहीं रख सके । उन्होंने हित की बात को ही प्रधानता दी । अन्य लोगों ने भी उनके निर्णय को स्वीकार किया । स्थूलभद्र चौदह पूर्वो के ज्ञाता हो गए । भद्रबाहु स्वामी ने स्थूलभद्र को चौदह पूर्वो के ज्ञाता के रूप में तैयार किया । व्यावहारिक दृष्टि से वे बृहत्कल्प के रचयिता कहे जाते हैं । व्यवहार सूत्र तथा दशाश्रुतस्कंध की रचना भी उन्होंने की। __ इतिहास अतीत के गहन अन्धकार में प्रकाश की किरणें फेंकने का प्रयास करता है । इतिहास के विषय में दुराग्रह को कतई स्थान नहीं होना चाहिए। आज जो सामग्री किसी विषय में उपलब्ध है, उसके आधार पर एक निष्कर्ष निकाला जाता है । कालान्तर में अन्य पुष्ट प्रमाण मिलने पर वह निष्कर्ष बदल भी सकता है। विभिन्न ग्रन्थों में मिलने वाले उल्लेख, स्वतन्त्र कृतियां, प्रशस्तियां, शिलालेख, सिक्के आदि के आधार पर इतिहास की खोज की जाती है । इसके लिए बड़े पुरुषार्थ की आवश्यकता है । जैन परम्परा का इतिहास साहित्य एवं कला आदि सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, पर जैन समाज ने उस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। धर्मदासजी महाराज का जन्म अठारहवीं शताब्दी में मध्यप्रदेश में हुआ किन्तु दुर्भाग्यवश उनकी कृतियां उपलब्ध नहीं हैं। उनके जन्मकाल का तथा माता-पिता का निर्विवाद उल्लेख भी नहीं मिलता । उनकी कृतियां कहां दबी पड़ी हैं, कहा नहीं जा
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy