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________________ आध्यात्मिक आलोक 513 आगे आते हैं । जिसका समग्र जीवन मलिन, पापमय और कलुषित रहा है, वह मृत्यु के ऐन मौके पर पवित्रता की चादर ओढ़ लेगा, यह संभव नहीं है । अतएव जो पवित्र जीवन यापन करेगा वही पवित्र मरण को वरण कर सकेगा और जो पवित्र मरण को वरण करेगा उसीका आगामी जीवन आनन्दपूर्ण बन सकेगा । जीवनसुधार के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपनी स्थिति के अनुकूल व्रतों को अंगीकार करके प्रामाणिकता के साथ उनका पालन करे । जो संसार से उपरत हो चुके हैं और जिनके चित्त में वैराग्य की ऊर्मियां प्रबल हो उठी हैं, वे गृहत्यागी बनकर महाव्रतों का पालन करते हैं। जिनमें इतना सामर्थ्य विकसित नहीं हो पाया या जिनका मनोबल पूरी तरह जागृत नहीं हुआ वे गृहस्थ में रहते हुए श्रावकधर्म का परिपालन करते हैं । व्रतसाधना ही जीवनसुधार का अमोघ उपाय है । मरणसुधार जीवनसुधार की चरम परिणति है। शास्त्र में चार प्रकार के विश्राम बतलाए गए हैं । उदाहरण के द्वारा उन्हें समझने में सुविधा होगी-एक लकड़हारा जंगल से जलाऊ लकड़ी काट कर लाता है। लकड़ियों का भारा बनाकर और उसे सिर पर रखकर वह लम्बी दूरी तय करता है। बोझ और चाल के कारण उसका शरीर थक जाता है । भारा उसके सिर के लिए दुस्सह हो जाता है। तब वह सिर के भारे को कधे पर रख लेता है । जब उस कधे में दर्द होने लगता है तो उसे दूसरे कधे पर रखता है । यह उस लकड़हारे का पहला विश्राम है। सिर का भार हल्का करने के लिए वह भार को ऊँचा उठा लेता है या लघुशंका करने बैठ जाता है तो यह उसका दूसरा विश्राम कहलाता है। यह भी अस्थायी विश्राम है। . कुछ और आगे चलने पर जब अधिक थक जाता है तो किसी चबूतरे पर या देवस्थान पर भारा टिकाकर खड़े-खड़े विश्राम लेता है । भार को वह वहां सुनियोजित भी कर लेता है । यदि भार विक्रय के लिए है तो वह एक के दो कर लेता है या बड़ा-सा दिखलाने के लिए उसे विशेष तरीके से जमाता है । यह उसका तीसरा विश्राम है। अपनी मंजिल तक पहुँचने पर या किसी को बेच देने पर उसे चौथा विश्राम मिलता है । यह द्रव्यविश्रान्ति का रूप है । - सांसारिक जीवों के लिए भी इसी प्रकार के चार विश्रान्तिस्थल हैं। चौबीसों घंटे आरम्भ-समारम्भ का भार लाद कर चलने वाला मानव सौभाग्य से जब सत्संग ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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