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________________ 500 आध्यात्मिक आलोक पूर्वगत श्रुत का ज्ञान वास्तव में सिंहनी का दूध है । उसे पचाने के लिए बड़ी शक्ति चाहिए । साधारण मनोबल वाला व्यक्ति उसे पचा नहीं सकता और जिस खुराक को पचा न सके, उसे वह खुराक देना उसका अहित करना है। इसी विचार से विशिष्ट ज्ञानी पुरुषों ने पात्र-अपात्र की विवेचना की है। स्थूलभद्र के मनोबल में आगे के पूर्वाध्ययन के योग्य दृढ़ता की मात्रा पर्याप्त न पाकर आचार्य भद्रवाहु ने वाचना बंद कर दी । अन्य साधुओं ने भी देखा कि आचार्य निर्वाध रूप से ज्ञानामृत की जो वर्षा कर रहे थे, वह अब बंद हो गई है । सुधा का वह प्रवाह रुक गया है । यह देखकर समस्त संघ को भी दुःख हुआ । इसका कारण भी प्रकाश में आ गया । श्रुत को संरक्षा का महत्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित था, अतएव संघ अत्यन्त चिन्तित हुआ । इसके पश्चात् क्या घटना घटित होती है, यह आगे सुनने से विदित होगा। जैन साहित्य के इतिहास में यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है जिसने भविष्य पर गहरा प्रभाव डाला है। बन्धुओ ! जैसे उस समय का संघ ज्ञान-गंगा के विस्तार के लिए यत्नशील था, उसी प्रकार आज का संघ भी यत्नशील हो और युग की विशेषता का ध्यान रखते हुए ज्ञान-प्रचार में सहयोग दे तो सम्पूर्ण जगत् का महान उपकार और कल्याण होगा।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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