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________________ 494 आध्यात्मिक आलोक भागी होता है । पवित्र भाव से समय पर दी गई सामान्य वस्तु भी कल्पवृक्ष है। अगर यह मान लिया जाय कि चिकना देने वाला चिकना पाएगा और रूखा देने वाला रूखा ही पाएगा, तो फिर भाव का मूल्य ही क्या रहा ? चन्दनबाला तेले का पारणा करने को उद्यत थी । पारणा के लिए उसे . उड़द के बाकले मिले थे । राजकुमारी होकर भी वह बड़ी विषम परिस्थितियों के चक्कर में पड़ गई थी । मूला सेठानी अत्यन्त ईर्ष्यालु एवं कर्कशा स्वभाव की थी । उसकी बदौलत चन्दनबाला पर गहरा संकट था । पारणा के लिए प्राप्त बाकले उसके सामने थे । फिर भी वह प्रतीक्षा कर रही थी कि कोई सन्त-महात्मा इधर पधार जाएँ और कुछ भाग ग्रहण करलें तो मेरी तपस्या में चार चांद लग जाएं, मैं तिर जाऊ उसका पुण्य अत्यन्त प्रबल था कि तीर्थनाथ भगवान् महावीर स्वयं ही पधार गए। । हथकड़ियों और बेड़ियों से जकड़ी चन्दनबाला द्वार पर बैठी प्रतीक्षा कर रही . थी । उसका एक पैर द्वार के बाहर और एक पैर भीतर था । वह संकटग्रस्त अवस्था में थी। फिर भी भगवान् को देखकर उसका रोम-रोम उल्लसित हो उठा। चित्त प्रफुल्लित हो गया। चेहरे पर दीप्ति चमक उठी । परन्तु यह क्या हुआ ? भगवान् चन्दनबाला के निकट तक आकर उल्टे पांव वापिस लौट पड़े । शारीरिक ताड़ना, तीन दिन की भूख, शिरोमुण्डन, तिरस्कार और जघन्य लांछना से भी जो हृदय द्रवित नहीं हुआ था और वज़ के समान कठोरता धारण किये था, वह भगवान् को भिक्षा लिये बिना वापिस लौटते देख धैर्य न धारण कर सका । चन्दना की आंखों से मोती बरसने लगे । भगवान की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई और उन्होंने पुनः लौट कर चन्दना के हाथों से बाकले ग्रहण किए । देवों ने सुवर्ण की दृष्टि की और 'अहो दानम्, अहो दानम्' की ध्वनि से गगनमण्डल गूंज उठा। ___ उड़द के छिलकों का दान और उसकी इतनी कद्र हुई । देवताओं ने उस दान की प्रशंसा की । यह सब उदात्त भक्ति-भाव का प्रभाव था । वास्तव में मूल्य वस्तु का नहीं, भक्ति-भावना का है अतएव यह आवश्यक नहीं कि सत्पात्र को मूल्यवान वस्तु दी जाय, मगर आवश्यक यह है कि गहरी भक्तिं और प्रीति के साथ निर्दोष वस्तु दी जाय । अलबत्ता विवेकवान् दाता इस बात का ध्यान अवश्य रखेगा कि देश और काल कैसा है ? मेरे दान से महात्मा को साता तो पहुँचेगी ? तात्पर्य यह है कि उत्कृष्ट भक्ति के साथ, विधिपूर्वक उत्कृष्ट पात्र को दिया गया दान उत्कृष्ट फलदायक होता है। जिसने भोजन पकाना, पकवाना, खरीदना, खरीदवाना आदि आरम्भ सर्वथा । त्याग दिया है, जो निरन्तर तप-संयम की आराधना में निरत है, जो संयम-पालन के हेतु
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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