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________________ • आध्यात्मिक आलोक 473 करणी द्वारा भी शिक्षा दी है । जो चल चुका है और पहुँच चुका है उसे चरण-चिह्न नहीं देखने पड़ते । पीछे चलने वालों को चरण-चिह्न देखने पड़ते हैं। अगर हम उनके चरण-चिह्नों को देखकर उनके मार्ग पर चलेंगे जिन्होंने सिद्धि प्राप्त की है या जो आत्मोत्थान के पथ के पथिक हैं तो जो सिद्धि गौतम को मिली वह हमें भी मिल सकती है । भले ही विघ्न आएं, बाधाएं हमें रुकने को मजबूर करें, कालक्षेप हो किन्तु जिसका संकल्प अचल है और जो उस मार्ग से न हटने का निश्चय कर चुका है, उसे सिद्धि प्राप्त हो कर ही रहेगी। दीपावली के प्रसंग पर व्यापारी हानि-लाभ का हिसाब निकालते हैं । लाभ देखकर प्रसन्न और हानि देखकर दुखी होते हैं । हानि है तो आगे उसे लाभ में परिणत करने का संकल्प करते हैं और दुगुना काम करते हैं । जीवन के इस महान व्यवसाय में भी यही नीति अपनानी चाहिए | उसकी भी चिन्ता करनी चाहिए । आर्थिक लाभ और हानि का सम्बन्ध सिर्फ वर्तमान जीवन तक ही सीमित है, मगर जीवन व्यापार का सम्बन्ध अनन्त भविष्य के साथ है । यदि साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका दीवाली की रात्रि में, वर्ष में एक बार भी शुद्ध हृदय से गहरा विचार करें तो उन्हें लाभ होगा। व्यापारी चांदी के टुकड़ों का हिसाब रखता है जिनमें कोई स्थायित्व नहीं है तो साधक को भी अपने जीवन का, अपनी साधना, अपने सद्गुणों के लाभा-लाभ का हिसाब रखना चाहिये । बिना हिसाब वाला, रामभरोसे रहने वाला व्यापारी जैसे धोखा खा सकता है, उसी प्रकार व्रती साधक को आध्यात्मिक लेखा-जोखा न रखने से खतरे का सामना करना पड़ सकता है । साधक अपने जीवन को ज्ञान ज्योति से आलोकित रखे, ज्ञान-आलोक में जीवन को निर्मलता की ओर अग्रसर करे और सम्पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय बन जाए, यही दीपावली का संदेश है । इस संदेश को समझ कर जो आचरण करेगा उसका भविष्य आलोकमय बन जाएगा ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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