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________________ 454 आध्यात्मिक आलोक गईं। चने भिगोये गये थे सो घर के बाहर चबूतरे पर सूख रहे थे । वृद्धा घर के बाहर सामायिक करने बैठी थी, अतएव बहुओं ने बाहर जाते समय मकान का ताला लगा दिया और चाबी द्वार पर एक ओर लटका दी । संयोगवश उसके एक लड़के को पसेरी की आवश्यकता पड़ी और वह उसे लेने के लिए घर आया । उसने दरवाजा बन्द देख कर वापिस लौटने का उपक्रम किया । बुढ़िया बैठी बैठी यह सब देख रही थी मगर सामायिक में होने से कुछ कहने में संकोच कर रही थी। किन्तु अन्त तक उससे रहा नहीं गया । उसने सोचा-लड़के को व्यर्थ ही चक्कर होगा और व्यापार के काम में बाधा पड़ेगी। ____इधर उसके मन में यह संकल्प-विकल्प चल ही रहा था कि अचानक एक भैंसा उधर आ निकला और चनों की ओर बढ़ने लगा। बुढ़िया के लिए चुप रहना अब असम्भव हो गया, परन्तु सामायिक के भंग होने का भय भी उसके चित्त में समाया हुआ था । सामायिक भंग करने से न मालूम क्या अनर्थ या अनिष्ट हो जाय, इस भय से वह उद्विग्न हो रही थी। मनुष्य दूसरों को तो धोखा देता ही है, अपने आपको भी धोखा देने से नहीं चूकता । बुढ़िया ने इस अवसर पर आत्मवंचना का ही अवलम्बन लिया । वह शान्तिनाथ भगवान की प्रार्थना करने के बहाने कहने लगी-"बेटा जरा शान्तिनाथ की प्रार्थना सुन ले, मैं सामायिक में हूँ।" प्रार्थना यों है "पाड़ो दाल चरे, कूची घोड़ा परे, ___ पसरी घट्टी तले, मोही तारो जी, श्री शान्तिनाथ भगवान, मोही पार उतारो जी ।" लड़के ने यह प्रार्थना सुनी और उसके मर्म को भी समझ लिया । उसने भैंसे को भगा दिया, कूची प्राप्त कर ली और पसेरी लेकर चला गया। - इस प्रकार सामायिक करने का स्वांग करने से, दंभ करने से और आत्मप्रवंचना करने से अनन्त काल में भी कार्य सिद्धि होने वाली नहीं है । धर्म उसी के मन में रहता है जो निर्मल हो । माया और दंभ से परिपूर्ण हृदय में धर्म का प्रवेश नहीं हो सकता । बुढ़िया की जैसी चेष्टा करने से मन का, वचन का और काय का भी दुष्प्रणिधान होता है और इससे सामायिक का प्रदर्शन भले. हो जाय, वास्तविक सामायिक के फल की प्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठता । 8) सामाइअस्स सइ अकरणया सामायिक काल में सामायिक की स्मृति न रहना भी सामायिक का दोष है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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