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________________ आध्यात्मिक आलोक 419 इस लालच में पड़कर तडाग (तालाब), सर व द्रह आदि जलाशयों को सुखाने का काम करता है तो समझना चाहिये कि वह महाहिंसा का काम कर रहा है । सर व द्रह वे जलाशय कहलाते हैं जो बिना खोदे प्राकृतिक रूप से स्वयं बन गए हैं । और खोद कर बनाये गये जलाशय को तालाब कहते हैं, जिनमें पाल बनाकर जल सचित किया जाता है । इन सभी प्रकार के जलाशयों को सुखाने का धंधा करना कर्मादान है। सरों तथा तालाबों को पाट कर मानव जीवन निर्वाह के अनिवार्य साधन जल का विनाश करेगा और जल काय के तथा उसके आश्रित असंख्य और अनन्त जीवों का हनन करेगा । अमर कोषकार अमरसिंह ने जल के सम्बन्ध में लिखा है 'जीवानुजीवनं औषधम्।' जल को संस्कृत भाषा में 'जीवन' कहा गया है । मनुष्य के पास सोना, चांदी, विशाल कोठी, सुन्दर और मूल्यवान फर्नीचर एवं खाने को मेवा मिष्ठान्न न हो तो भी वह जीवित रह सकता है । दुष्काल के समय खेजड़े की छाल, जंगली धान, भुरंट की रोटी, महुआ तथा इसी प्रकार की वस्तुएं खाकर मनुष्य पेट भर लेता है। परन्तु पानी और पवन के बिना जीवधारी का काम नहीं चल सकता, वह जीवित नहीं रह सकता। इस दृष्टि से पानी सोने से भी अधिक मूल्यवान है । प्यास से जिसका कंठ सख गया है और प्राण कंठ में अटके हैं वह पानी के लिए सोने की डलियां फेंक देगा । इतने मूल्यवान पदार्थ जल का मानव को 'दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। लालच के वशीभूत होकर पानी को सुखाना तो स्व-पर दोनों के लिए हानिप्रद और घोर हिंसा का कारण है अतएव विवेकशील श्रावक ऐसे अनर्थकारी धधे को कदापि नहीं अपना सकता। (१५) असतिजनपोसणया कम्मे-कुछ गिरोह ऐसे होते हैं जो लड़कियों को उड़ा ले जाते हैं और उन्हें पाल-पोस कर व्यभिचार जैसे घृणित कर्म में लगा देते हैं। यह कितनी लज्जाजनक बात है | कई नीच व्यक्ति अपनी लड़की की शादी नहीं करते और उसे स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने दिया जाता है । कई लोग व्यभिचारिणी स्त्रियों को रख कर अड्डे चलाते हैं । किन्तु इस प्रकार के असामाजिक, अनैतिक और अधार्मिक कार्यों द्वारा अर्थ-लाभ करना निकृष्ट और निन्दनीय कृत्य है । इससे द्रव्यहिंसा भी होती है और भावहिंसा भी । ऐसा करने वाले लोग सदाचार के भयानक शत्रु हैं, समाज के कोढ़ और पापों के प्रबल प्रचारक हैं | धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र तो एक स्वर से इस प्रकार के कुकत्यों का विरोध करते ही हैं, पर सरकारी कानून भी इनके विरोधी हैं । संसार का कोई भी सत्पुरुष ऐसे नीच कर्म का समर्थन नहीं कर सकता।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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