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________________ . 394 आध्यात्मिक आलोक व्यापार लोकनिन्दित होने से किसी सद्गृहस्थ के योग्य नहीं है। दूसरे हिंसा आदि अनेक घोर अनर्थों का भी कारण है। इनके सेवन से सिवाय अनर्थ के कोई लाभ नहीं होता। ___तमाखू भी विषैले पदार्थों में से एक है और आजकल अनेक रूपों में इसका उपयोग किया जा रहा है। तमाख को लोग साधारण चीज या साधारण विष समझने लगे हैं किन्तु यह उनका भ्रम है। तमाखू का पानी अगर मच्छर या मक्खी पर छिड़क दिया जाये तो वे तड़फड़ा कर मर जाते हैं। यदि तमाखू न खाने वाला अकस्मात् तमाखू खा ले तो उसे चक्कर आने लगते हैं। उसका दिमाग घूमने लगता है और जब तक वमन न हो जाये तब तक उसे चैन नहीं पड़ता । क्या आपने कभी विचार किया है कि ऐसा क्यों होता है ? वास्तव में मनुष्य का शरीर तमाखू को सहन नहीं करता। शरीर की प्रकृति से वह प्रतिकूल है। शारीरिक प्रकृति के विरुद्ध मनुष्य जब तमाखू का सेवन करता है तो शरीर की ओर से यह चेष्टा होती है कि वह उसे बाहर निकाल फेंके। इसी कारण वमन होता है। बीड़ी, सिगरेट, या हुक्का आदि के द्वारा जब तमाखू का सेवन किया जाता है तो शरीर पर दोहरा अत्याचार होता है। तमाख और धुआँ दोनों शरीर के लिये हानिकारक हैं। जब कोई मनुष्य देखादेखी पहलेपहल बीड़ी-सिगरेट पीता है तब भी उसका मस्तक चकराता है और सिर में जोरदार पीड़ा होती है। किन्तु मनुष्य इतना विवेकहीन बन जाता है कि प्रकृति की ओर से मिलने वाली चेतावनी की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देता और कष्ट सहन करके भी अपने शरीर में विष घुसेड़ता जाता है। धीरे-धीरे शरीर की वह प्रतिरोधक शक्ति क्षीण हो जाती है और मनुष्य उसे समझ नहीं पाता। कई लोग तमाखू सूंघते हैं। ऐसा करने से उनके आसपास बैठने वालों को कितनी परेशानी होती है। इस प्रकार तमाखू का चूसना, पीना और सूंघना सभी शरीर के लिये भयानक हानिकारक हैं। आखिर जो जहर है वो लाभदायक कैसे हो सकता शरीर-विज्ञान के वेत्ताओं का कथन है कि जो बीमारियां अत्यन्त खतरनाक समझी जाती हैं, उनके अन्य कारणों में तमाखू का सेवन भी एक मुख्य कारण है। क्षय और कैंसर जैसी प्राणलेवा बीमारियां तमाखू के सेवन से उत्पन्न होती हैं। कैंसर कितनी भयंकर बीमारी है, यह कौन नहीं जानता? चिकित्सा विज्ञान और शरीर विज्ञान के विकास के इस युग में भी कैंसर अब तक असाध्य बीमारी समझी जाती है। हजारों में से कोई भाग्यवान बचे तो भले ही बच जाये अन्यथा कैंसर तो प्राण लेकर ही
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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