SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आध्यात्मिक आलोक 377 जो आचरण को उत्पन्न कर सके । निष्फल ज्ञान वस्तुतः अज्ञान की कोटि में हो गिनने योग्य है। इसी दृष्टिकोण को सामने रख कर भगवान महावीर ने ज्ञान और चारित्र दोनों को मोक्ष का अनिवार्य कारण कहा है । जहाँ तक ज्ञान का प्रश्न है, मुनि और गृहस्थ दोनों समान रूप से उसकी साधना कर सकते हैं, मगर चारित्र के सम्बन्ध में यह संभव नहीं है । इस कारण चारित्र दो रूपों में विभक्त कर दिया गया है-मुनि धर्म और श्रावक धर्म । दोनों को अपनी-अपनी मर्यादा के अनुसार और शक्ति के अनुसार अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए । इस विषय में पहले प्रकाश डाला जा चुका है। - गृहस्थों के सामने आनन्द श्रावक का जीवन आदर्श रूप है । उसका विवेचन एक प्रकार से गृहस्थ चारित्र का विवेचन है । भगवान ने उसे धर्म देशना दी। उसे बोध प्राप्त हुआ और फिर उसने श्रावक धर्म को अंगीकार किया । इसी प्रकरण को लेकर कर्मादानों का विवेचन चल रहा है । पांच कर्मादानों के विषय में प्रकाश डाला जा चुका है, अब छठे कर्मादान पर विचार करें। (६) दंतवाणिज्जे ( दन्त वाणिज्य )- दातों का व्यापार करना दन्त वाणिज्य कहलाता है । पहले बतलाया जा चुका है कि वस्तु का उत्पादन न करके उसे खरीदना और खरीद कर बेचना वाणिज्य कहलाता है । दांतों के व्यापार का हिंसा से गहरा सम्बन्ध है । कोई व्यापारी हाथी आदि के दांतों को खरीदने के लिए लोगों को पेशगी रकम देता है । पेशगी रकम लेने वाले दांत प्राप्त करने के लिए हाथी आदि का वध करते हैं और दांत लाकर व्यापारी को देते हैं । ऐसी स्थिति में वह व्यापारी दंत वाणिज्य नामक कर्मादान के पाप का भागी होता है । दांत साधारणतः अचित्त वस्तु दीख पड़ती है किन्तु दीर्घ दृष्टि महर्षियों ने विचार किया और कहा-दांत अचित्त हैं, इस विचार से हे मानव ! तू भ्रम में न पड़ा थोड़ा आगे का भी विचार कर । जब दांतों का संग्रह और उपयोग अधिक परिमाण में होगा तो वे आएंगे कहां से ? आखिर उनके लिए हाथियों की हत्या करनी पड़ेगी या जीवित हाधियों के दांत उखाड़े जाएंगे । दांत उखाड़ने में हाथी को कितनी पीड़ा होती है, यह तो भुक्तभोगी ही जान सकते हैं । खुराक के लालच में पड़ कर और स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी भोग के आकर्षण में पड़ कर हाथी पकड़ में आ जाते हैं । सांभर आदि पशुओं के सोंगों के लिए उनकी हत्या की जाती है । हाथी को पकड़ने के लिए अनेक तरीके काम में लाए जाते हैं। कहते एक बड़ा-सा गड्ढा खोद कर उस पर बांसों को एक जालो-सी विछा दो जाता
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy