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________________ - आध्यात्मिक आलोक 329 - भगवान् की स्वावलम्बन की इस उदात्त स्वर-लहरी में जीवन का तेज और ओज भरा हुआ है । हमें भलीभाँति समझ लेना चाहिए कि हमारा कल्याण और उत्थान हमारे ही प्रयत्न और पुरुषार्थ में निहित है। कल्याण और उत्थान भीख मांगने से नहीं मिलता। 'जीवित प्राणी चलता है, मुर्दा घसीटा जाता है ।' ऐजिन दूर है तो मजदूर धक्का देकर डिब्बों को इधर-उधर कर देते हैं । या ऐजिन ने धक्का दिया, डिब्बा थोड़ी दूर चला और रुक गया । उस डिब्बे में स्वयं की पावर (शक्ति) नहीं है चलने की । वह दूसरे के सहारे चलने वाला है। इसी प्रकार सत्संगति का धक्का लगने पर थोड़ा आगे चला जा सकता है, मगर मजिल तक पहुँचने के लिए तो निज का ही बल चाहिए । रेल की पटरियों पर चलने वाली ठेलागाड़ी में धक्का देकर गति लानी पड़ती है । बार-बार धक्का देने से उसमें वेग आता है । एक-दो स्टेशनों तक यों काम चल जाता है । पर डिब्बों को लेकर चलने की शक्ति उसमें नहीं है । क्या मानव को अपना जीवन ऐसा ही बनाना उचित है ? नहीं, उसे सजीव की तरह स्वयं चलना चाहिए, मुर्दे की तरह दूसरे के सहारे चलना शोभा नहीं देता । श्रावक आनन्द ने महावीर स्वामी की ज्ञानज्योति से अपना लघु दीप जला लिया और अब वह स्वयं आलोकित होकर चल रहा है । उसने भोगोपभोग परिमाण व्रत को जब अंगीकार किया तो भोजन की दृष्टि से होने वाले पाँच और कर्म की दृष्टि से होने वाले पन्द्रह अतिचारों से भी बचने का संकल्प किया । पाँच अतिचारों का प्रतिपादन किया जा चुका है। कर्मादानों के सम्बन्ध में कुछ बातें बतलाना आवश्यक है। 'कर्मादान' शब्द दो शब्दों के मेल से बना है, वे दो शब्द हैं - कर्म और आदान । जिन कार्यों से कर्म का बन्ध होता है वे कर्मादान हैं, यह इस शब्द का अर्थ है । किन्तु यह अर्थ परिपूर्ण नहीं है । संसार में ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं है जिससे कर्म का आदान ( ग्रहण बन्ध ) न होता हो । शुभ कृत्य शुभ कर्मो के आदान के कारण हैं तो अशुभ कृत्वों से अशुभ कर्मों का आदान होता है । इस प्रकार भाषण प्रवचन, श्रवण, मनिवन्दन आदि सभी क्रियाएं कर्मादान सिद्ध हो जाती हैं। फिर कर्मादानों की संख्या पन्द्रह ही क्यों कही गई है ? क्या वास्तव में संसार के सभी कृत्य कर्मादान ही हैं ? इस प्रश्न पर विचार करने की आवश्यकता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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