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________________ आध्यात्मिक आलोक 321 अतएव जिस वस्तु का स्वाद बदल जाय, गंध बदल जाय और रंगरूप बदल जाय, उसे अभक्ष्य जान कर श्रावक कार्य में नहीं लेता - न ही लेना चाहिए । विभिन्न वस्तुओं के विभिन्न स्वभाव हैं । कोई वस्तु शीघ्र बिगड़ जाती है, कोई देर में बिगड़ती है । उनका बिगड़ना मौसम पर भी निर्भर है। अतएव सब चीजों के लिए कोई एक समय निर्धारित नहीं किया जा सकता । गृहस्थ यदि सावधान रहे तो अपने अनुभव से ही यह सब समझ सकता है । बहिनों को इस सम्बन्ध में खूब सावधान रहना चाहिए । (५) तुच्छ औषधिभक्षण-भोजन करने का साक्षात् प्रयोजन भूख को उपशान्त करना है । जिस वस्तु को खाने से वह प्रयोजन सिद्ध न हो, उसे नहीं खाना चाहिए । विवेकमान गृहस्थ यह लक्ष्य रखता है कि काम बने, भूख मिटे और वस्तु व्यर्थ न बिगड़े | सीताफल, तिन्दुकफल आदि में बीज बहुत होते हैं । उनमें खाद्य अंश अत्यल्प होता है । उनके खाने से शरीर निर्वाह हो जाय ऐसी बात नहीं है । जिस वस्तु के सेवन से शरीर की यात्रा का निर्वाह न हो और उस वस्तु की भी हानि हो, उसके सेवन से भला क्या लाभ है । उदर की पूर्ति हो, शरीर का निर्वाह हो और अधिक हिंसा भी न हो, यही विचार उत्तम है । केवल थोड़ी-सी देर के स्वाद-सुख के लिए किसी वस्तु को खाना और हिंसा का भागी बनना श्रावक पसन्द नहीं करता । श्रावक अपने भोजन के विषय में विवेकयुक्त होता है । जिसमें विवेक नहीं होता, वह खाने के विषय में कम सोचता है । स्वादलोलुप न हिंसा - अहिंसा का विचार करता है न हित-अहित की बात सोचता है और न अन्य प्रकार के हानि-लाभों का विचार करता है । आज फल, मक्खन, घृत आदि पदार्थ विदेशों से सीलबन्द होकर भारत आ रहे हैं । यह कैसी बिडम्बना है । जिस देश में गाय को माता माना जाता हो और उसकी पूजा की जाती हो वह देश मक्खन जैसी चीज भी विदेश से मंगवाए । जो देश कृषिप्रधान गिना जाता हो उसे विदेशों की दया पर निर्भर रहना पड़े और उदरपूर्ति के लिए उनका मुख ताकना पड़े, यह भारतीय जनों के लिए क्या शोचनीय स्थिति नहीं है ? जब देश में खाद्य पदार्थों की कमी हो तब खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि कोई खाद्य पदार्थ बिगड़ने न पावे । इससे लौकिक और धार्मिक दोनों लाभ होगे । पर इधर कितना ध्यान दिया जा रहा है ? आज लोगों की सात्विक वृत्ति कम हो रही है । खाद्य - अखाद्य का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है । मिलावट करना मामूली बात हो गई है । भाग्य से ही
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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