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________________ आध्यात्मिक आलोक 307 ज्योति जगाई और वह ज्योति उन्हीं तक सीमित नहीं रही । अन्दर जब प्रकाश उत्पन्न होता है तो उसकी कतिपय किरणें बाहर प्रस्फुटित हुए बिना नहीं रहतीं । बाहर निकल कर वे किरणें कितने ही लोगों का पथ प्रशस्त करती हैं । भूधरजी महाराज के अन्तरतम में आलोक का जो पुंज उद्भूत हुआ, उससे सहस्रों नर-नारियों को मार्गदर्शन मिला । उनकी वाणी-गंगा में अवगाहन करके न जाने कितने लोगों ने अपने मन का मैल धोया । त्याग और तप की साधना से प्रमाद घटता है और प्रमाद के घटने से ज्ञान बढ़ता है । चारित्र की शोभा ज्ञान के बिना नहीं होती । ज्ञान और चारित्र का संगम ही सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग है । भूधरजी महाराज इन दोनों ही क्षेत्रों में अग्रसर थे। एक बार भूधरजी महाराज का इन्दौर की ओर विहार हुआ । उस काल में किसी दुकान पर खुले रूप में प्रवचन करने का प्रचलन था । जिस गांव के प्रांगण में वे प्रवचन कर रहे थे, वहां होकर कुछ सैनिकों के साथ एक सेनाधिकारी निकला । मुनि के प्रवचन को सुनने की उत्कंठा से वह ठिठका | कुछ वाक्य कानों में पड़े तो रुक गया और आगे सुनने को उत्सुक हुआ | उनके ज्ञानपूर्ण भाषण से वह बहुत प्रभावित हुआ । उसके चेहरे पर जिज्ञासा की रेखाएं देख कर मुनिराज ने कहा - क्या कुछ पूछने की इच्छा है ? वह अधिकारी जोधपुर के श्री भण्डारी थे । मुनिराज के प्रश्न को सुनते ही उन्हें एक नवीन कल्पना आई | बात यह थी कि वे दिल्ली बादशाह के यहां काम करते थे, उनकी शाहजादी गर्भवती हो गई थी । भण्डारीजी का विचार था कि- कोई दैवी कारण होगा नहीं तो शाहजादी ऐसी गलती नहीं कर सकती ? उनका यह विचार सत्य है या नहीं, इस विषय में मुनिराज से जानने का उन्होंने विचार किया । अतः उन्होंने मुनिराज से पूछा-"क्या पुरुष के साथ संभोग किये बिना भी कोई स्त्री गर्भवती हो सकती है ?" भूधरजी स्वामी ने उत्तर दिया-"हाँ, ऐसा हो सकता है । गर्भाधान का कारण एक पुरुष संयोग ही नहीं है । भगवान महावीर ने उसके पांच अन्य कारण भी बतलाए हैं । गर्भ पुरुष के संयोग से है अथवा अन्य कारण से, इसकी परीक्षा भी की जा सकती है । विज्ञान ने आज अपने भौतिक उपकरणों से इसके अन्वेषण की कुछ बातें जगत के समक्ष रखी हैं किन्त महर्षियों ने पहले ही अपने आत्मज्ञान के बल से जान लिया था ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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