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________________ 294 आध्यात्मिक आलोक की विशेषता यह है कि यह धार्मिक रूप में स्वीकृत है, अतएव मनुष्य इसे बलात् नहीं, स्वेच्छापूर्वक स्वीकार करता है । साथ ही धर्मशास्त्र महारंभी यन्त्रों के उपयोग पर पाबन्दी लगा कर आर्थिक वैषम्य को उत्पन्न नहीं होने देने की भी व्यवस्था करता है। अतएव अगर अपरिग्रह व्रत का व्यापक रूप में प्रचार और अंगीकार हो तो न अर्थ-वैषम्य की समस्या विकराल रूप धारण करे, न वर्ग संघर्ष का अवसर उपस्थित हो और न उसके लिए विविध प्रकार के त्रासदायक संघर्ष का अवसर उपस्थित हो और न उसके लिए विविध प्रकार के वादों का आविष्कार करना पड़े। मगर आज की दुनिया धर्मशास्त्रों की बात सुनती कहाँ है ? यही कारण है कि संसार अशान्ति और संघर्ष की क्रीड़ाभूमि बना हुआ है और जब तक धर्म का आश्रय नहीं लिया जायेगा, तब तक इस विषम स्थिति का अन्त नहीं आएगा । : देशविरति धर्म के साधक को अपनी की हुई मर्यादा से अधिक परिग्रह नहीं: बढ़ाना चाहिए । उसे परिग्रह की मर्यादा भी ऐसी करनी चाहिए कि जिससे उसकी तृष्णा पर अंकुश लगे, लोभ में न्यूनता हो और दूसरे लोगों को कष्ट न पहुँचे । सर्वविरत साधक का जीवन तो और भी अधिक उच्चकोटि का होता है । वह आकर्षक शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श पर राग और अनिष्ट शब्द आदि पर द्वेष भी नहीं करेगा । इस प्रकार के आचरण से जीवन में निर्मलता बनी रहेगी ऐसा साधनाशील व्यक्ति चाहे अकेला रहे या समूह में रहे, जंगल में रहे या समाज रहे, प्रत्येक स्थिति में अपना व्रत निर्मल रख सकेगा । मुनि स्थूलभद्र वेश्या के भवन में, विलास और विकार के वातावरण में रहे. कुएँ की पाल पर साधना करने वाले मुनि भी जनसमुदाय के बीच में हैं । नाग की बामी और सिंह की गुफा वाले मुनियों को जन-सम्पर्क से दूर रहना है । कुएँ की पाल पर साधना करने वाले मुनि पर कभी पानी भरने वाली महिलाएं पानी और कीचड उछाल देतों उनसे बाल्टी या डोली टकरा देतीं । रात्रि में निद्रा से उन्हें बचना पड़ता है । कभी निद्रा का झोंका आ जाय तो कुएँ में पड़ने का खतरा है । दिन 1 समय राग-द्वेष से अपनी आत्मा की रक्षा करनी है। इस प्रकार वे सतत् अप्रमत्त अवस्था में रह कर अचल समाधि में स्थित रहे । निरन्तर जागृत रहना, पल भर के लिए भी निद्रा न लेना और राग-द्वेष पर विजय पाना कोई साधारण साधना नहीं है । प्रमाद पर विजय प्राप्त करने की उतनी आवश्यकता शायद सिंह गुफा वाले और वेश्या के भवन वाले मुनि को न रही हो 1 · तीनों मुनि वर्षाकाल व्यतीत होने पर गुरु के चरणों में उपस्थित होते हैं और दीर्घकाल के पश्चात् गुरु का दर्शन करके आनन्द का अनुभव करते हैं । कए की
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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