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________________ 288 आध्यात्मिक आलोक सकें । जिन्होंने स्वयं अपने जीवन को सुधारा है, उन पर दूसरों के जीवन को भी सुधारने का दायित्व है। दूसरों के जीवन सुधार में सहायक बनना भी एक प्रकार से अपने जीवन को सुधारना है । जिसके पास पुण्य का बल है, दिमाग का बल है, वह साधारण प्रयास से भी दूसरे के जीवन में परिवर्तन ला सकता है। सम्पत्तिशाली घरों के बढ़ने और चढ़ने के जो कारण हैं वे बन्धु-भाव व्यसनहीनता और सेवा भावना है । इनके विपरीत कार्य होने से उनका विनाश हो जाता है । भर्तृहरि ने कहा है दौर्मन्त्र्या न्नृपति विनश्यति, यतिः संगात् सुतो लालनात् । विप्रोऽनध्ययनात् कुलं कुतनयात, शीलं खलोपासनात् । हीर्मद्यादनवेक्षणादपि कृषिः, स्नेहा प्रवासाश्रयात् । मैत्री चाप्रणयात् समृद्धिरनयात् । त्यागात् प्रमादाद्धनम् ।। . मन्त्री खराब हो तो राजा विनष्ट हो जाता है । परिग्रह धारण करने से साधु का सर्वनाश होता है। अधिक लाड़ लड़ाने से पुत्र, अविद्या से ब्राह्मण, कुपुत्र से कुल, दुर्जन की संगति से शील, मद्यपान से लज्जा, देखरेख नहीं करने से खेती, अधिक काल तक प्रवास से स्नेह, प्रेम के अभाव से मैत्री और अनीति से समृद्धि तथा त्याग एवं प्रमाद से धन का नाश हो जाता है । जैसे लकड़ी में लगा घुन उसे नष्ट कर डालता है, उसी प्रकार. जीवन में प्रविष्ट दुर्व्यसन जीवन को नष्ट कर देता है । अतएव दुर्व्यसनी.लोगों की संगति से बचना चाहिए | अकर्तव्य से दुश्मनी रखनी चाहिए । जीवन को सदैव निर्मल और पवित्र बनाने का प्रयत्न करते रहना चाहिए । भगवान् महावीर का सन्देश है कि अपने जीवन का उत्थान और पतन मनुष्य के स्वयं के हाथ में है । कोई अदृश्य शक्ति या देवी-देवता हमारे जीवन को बना-बिगाड़ नहीं सकते । मनुष्य स्वयं ही अपना शत्रु और स्वयं ही अपना मित्र है । 'पुरिसा तुम मेव तुम मिता' एक हितैषी ने संसारी लोगों को उद्बोधन करते हुए कहा-मित्र ! जीवन की सरिता बह रही है, इस बहती हुई सरिता में कहीं तेरे जीवन की सम्पदा नष्ट न हो जाय । जरा संभल के चलना । कहा है धर्म री गंगा में हाथ धोय ले नी रे। '. चांदणों हओ है, मोती पोटा ले नी रे। सत्पुरुष सदा से संसारी जीवों को सावचेत करते आ रहे हैं कि धर्म रूपी गंगा में अवगाहन करो । ऐसा करने से ही जीवन में शान्ति मिलेगी । गंगा तन को ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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