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________________ आध्यात्मिक आलोक 287 उत्तरदायित्व है । देश की स्वाधीनता का अर्थ इतना ही नहीं कि विदेशी शासकों की कुर्सी पर देशी शासक बैठ जाएं। सच्ची स्वाधीनता में देश की कल्याणकारिणी परम्पराओं की तथा संस्कृति की सुरक्षा भी गर्भित है। भारत स्वाधीन हो कर भी अगर अपनी परम्पराओं की और अध्यात्म-प्रधान संस्कृति की रक्षा नहीं करता और विदेशियों के ही अनिष्ट आचार-विचार का अन्धानुकरण करता है तो इस स्वाधीनता का कोई विशेष अर्थ नहीं । भारत की आत्मा अगर उन्मुक्त न हुई तो वह स्वाधीनता किस काम की ? स्वाधीनता का सच्चा लाभ तब है जब आप अपने देश की महान सभ्यता का जो जनमंगलकारिणी है और जीवन के अन्तरंग तत्व के विकास पर जोर देती है, प्रचार और प्रसार करें और अखिल विश्व के समक्ष उसका सच्चा स्वरूप प्रस्तुत करें। किन्तु आज उलटी गंगा बह रही है । देश के देशी शासक विदेशों की नकल कर रहे हैं, उनकी संस्कृति को इस देश पर लादने का प्रयास कर रहें हैं, हिंसा बढ़ रही है, अनैतिकता अपना सिर ऊंचा उठा रही है, घूसखोरी, भ्रष्टाचार और पक्षपात बढ़ता जा रहा है। देश के इस अधःपतन को देख कर विवेकशील जन ही सोचते हैं कि आखिर इस दशा का कहां अन्त आएगा? देश कहां जाकर रुकेगा? इस परिस्थिति में परिवर्तन लाने का कार्य शक्तिशाली व्यक्ति कर सकते हैं। शक्तिशाली वे जो बल बुद्धि तथा आत्मिक शक्ति से युक्त हैं। जिन्होंने इस तथ्य को भलीभाँति हृदयंगम कर लिया हो कि जीवन और धर्म अभिन्न हैं । धर्म की उपेक्षा करके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का उत्थान होना संभव नहीं है । प्रजा में धार्मिक भावना को जगाये बिना देश में फैले अनाचार का उन्मुलन नहीं हो सकता । 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा।। जो लोग पेट पूर्ति की समस्या से ही परेशान हैं, उनसे सामाजिक कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती । श्रीमन्त लोग अगर इस कार्य को अपने हाथ में ले लें तो परिस्थिति में सुधार की आशा की जा सकती है । उनके लिए यह कार्य कठिन नहीं है । भारत का पुरातन इतिहास बतलाता है कि राजपुत्रों ने महलों का परित्याग कर वनों की शरण ली और आत्मिक साधना में तत्पर होकर स्व-पर का कल्याण किया। महलों में पूर्वसंचित पुण्य का भोग करके क्षय किया जा सकता है। किन्तु नयी सामग्री जुटानी है तो महलों को छोड़ना होगा । आदिवासी लोगों की और भी अनेक कार्यकर्ताओं का ध्यान आकर्षित हुआ है । उन्हें सभ्य और शिक्षित बनाने का प्रयत्न हो रहा है। किन्तु सच्ची सभ्यता और शिक्षितता का लक्षण यह है कि वे दुर्व्यसनों से बचें, अपने जीवन व्यवहार में सुसंस्कृत हों, पापों से अपनी रक्षा कर सकें, अपने जीवन के उच्च-आदर्श को समझ
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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