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________________ 237 आध्यात्मिक आलोक सम्यग्दर्शनी को अपना विश्वास निर्मल रखने के लिये परपाषंड-प्रशंसा से दूर रहना चाहिये। इसके विपरीत उसे स्वपाषंड प्रशंसा करनी चाहिये। सम्यग्दर्शनी दिखावे से आकर्षित नहीं होता। क्योंकि दिखावे की ओर झुकने वाला कभी-कभी ठगा जाता है। कोई तपस्वी कल देवता से मिलने की बात कह कर आज बीमार पड़ जाये, तो लोगों का उस पर से विश्वास घट जायेगा। भीतर का मूल्य जहाँ ज्यादा होगा, वहाँ बाह्य दिखावा कम होगा, कांसे की थाली के गिरने पर अधिक आवाज होती है । वैसी सोने की थाली के गिरने पर आवाज नहीं होती । मूल्य सोने की थाली का अधिक है अतः उसमें झनझनाहट कम है। कहा भी है असारस्य पदार्थस्य, प्रायेणाडम्बरो महान । नहि स्वर्णे ध्वनिस्तादूग, यादृक् कांस्ये प्रजायते ।। पुण्य-पाप, आत्मा-परमात्मा और जीव आदि तत्वों पर विश्वास रखने वाला सम्यग्दर्शनी अपने मार्ग पर अडिग रहता है। निश्चल मन वाला खतरे की जगह पर भी जा सकता है। सर्कस का खिलाड़ी तार के ऊपर साइकिल चला लेता है, कारण उसका सतत् अभ्यास है। किंतु कविवर आनन्दघनजी कहते हैं धार तलवार नी सोहली, दोहली चवदमा जिन तणी चरण सेवा । धार पर नाचतां देख बाजीगर, सेवना धार पर रहे न देवा ।।धार।। तलवार की धार पर चलना सरल है, पर परमात्मा के चरणों की सेवा में चलना कठिन है। अज्ञान एवं मोह के दुर्बल भावों से हटकर स्थूलभद्र ज्ञान तथा निर्मल भाव के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं। चार माह के लिये अनिन्द्य सुन्दरी रूपकोषा का अन्तःपुर उन्होंने काम विजय के परीक्षण के रूप में अंगीकार किया। वहाँ स्थूलभद्र ने श्रद्धा का नगर बनाया, संवर का द्वार लगाया तथा क्षमा याचना का परकोटा तैयार किया और इस तरह स्थूलभद्र रूपकोषा के महल में अडिग भाव से ध्यानस्थ हो गये। रूपकोषा वस्त्राभूषण तथा विविध हाव-भाव एवं सरस भोजन से मुनि के मन को ललचाने लगी। उसका विश्वास था कि नारी के इस आकर्षण के आगे मुनि का झुकना बहुत आसान है। इस तरह बहुतों को उसने अपने आगे नतमस्तक किया था। कुछ दिन पहले स्थूलभद्र भी रूपकोषा के मधुकोष में भ्रमरवत आलिप्त रह चुके थे। अतः वह समझती थी कि वैसे तरुणवय वाला भोग-पदार्थों की ओर शीघ्र आकर्षित होता है। जैसे छोटा बच्चा खिलौने की ओर झुक जाता है। अवस्था की
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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