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________________ 236 आध्यात्मिक आलोक करले किन्तु वेश्यावृत्ति को खुला रखे, तो यह नीति के विरुद्ध होगा। इसको सुव्रत नहीं कह सकते। भारतीय परम्परा के अनुसार २५ वर्ष तक ब्रह्मचर्य .का नियम रखना अच्छा गिना गया है। ___पाश्चात्य देशों में सदाचार की ओर बड़ा दुर्लक्ष्य है। वहाँ व्यभिचार का खुला ताण्डव चलता रहता है। ब्रह्मचर्य खण्डन को लोग उतना बुरा नहीं मानते, जितना कि अन्य नैतिक नियमों को तोड़ने को । किन्तु भारत धर्म प्रधान देश है यहाँ के लोग व्रत नियम करके व्यभिचार से बचने की चेष्टा करते हैं। बिना विवेक के पाश्चात्य देशों की सचाई की प्रशंसा करना भी परपाषंड-प्रशंसा जैसा हो सकता है। व्यापार में एक बात रखना उन्होंने अर्थलाभ में सहायक माना है, पर राजनीति में बड़ा से बड़ा झूठ बोलना और विश्वासघात करना उतना बुरा नहीं मानते। क्योंकि यह राजनीतिक दांव पेंच है। भगवान महावीर का सन्देश है कि कई बार अस्थिर मति वाले इस प्रकार की पाषंड प्रशंसा से गड़बड़ा जाते हैं। अतएव सम्यग्दर्शनी को इसका परित्याग करना चाहिये। इसी प्रकार साधक को मिथ्यामार्ग वाले का संग यानि अति परिचय भी छोड़ना आवश्यक है। क्योंकि संग दोष से साधना का रूप भी गलत हो सकता है। कहावत भी है कि "तुख्म तासीर, सोहबतेअसर" जब पाप कर्म कटेंगे तो दुःख स्वयं ही मिट जायेंगे। क्योंकि पाप और दुःख इन दोनों में कार्यकारण भाव है। दुःख मिटाने के लिये कुछ गलत रीति रिवाज पाले जाते हैं। व्रत करके पुत्रादि की कामना की जाती है, ऐसे व्रत प्रशंसा के लायक नहीं हैं। स्वार्थ की भावना से व्रत करना, व्रत के महत्त्व को कम करना है। कामना को दृष्टि में रखकर तथा राग या मिथ्यात्व में पड़कर किये गये व्रत विष मिश्रित पकवान की तरह हेय हैं। इस प्रकार की परिपाटी मिथ्यात्व को बढ़ाने में सहायक होगी। आज मनुष्य जिसकी प्रशंसा कर रहा है, उसकी कल बुराई करने लगता और जिसकी कल बुराई करता था, उसकी आज प्रशंसा करने लगता है। राजनीति में कोई नेता हो गया तो उसके दुर्गुण भी प्रशंसनीय बन जाते हैं। क्या पद पा लेने से उसका बुरापन दूर हो गया, यह विचारणीय विषय है। धर्मनीति में ऐसा नहीं होना चाहिये, परन्तु राजनीति का प्रभाव पड़ने से यहाँ पर भी दूषण आ जाता है। कल का ऊँचा आज का हीन बन जाता है, यह वाणी की चंचलता, मनुष्य की प्रामाणिकता के लिये खतरा है। जिसकी प्रशंसा की, ऊंचा माना, उसे ५ शीघ्रता से बुरा न कहिये। हर एक का मूल्य आंकने से पहले विचार कीजिये। ..
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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