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________________ 196 आध्यात्मिक आलोक त्याग का मार्ग लेना है, राग का नहीं, क्योंकि राग की आदि अच्छी है परिणाम अच्छा नहीं; जबकि त्याग के मार्ग की आदि कठोर है किन्तु उसका परिणाम अच्छा है । बुढापे के लिए धन संचय करना सभी गृहस्थ ठीक मानते हैं । मकान किराए पर देना, पेन्शन हेतु दो वर्ष अधिक सेवा करना, ब्याज पर रुपया लगाना आदि से व्यवस्था जमाते हैं । इसी प्रकार आध्यात्मिक मार्ग में भविष्य की शान्ति के लिए मनुष्य सत्कर्म रूपी धन संचित करने की व्यवस्था की बात क्यों नहीं सोचता । __ श्रीयक को मन्त्री पद के लिए योग्य बताकर स्थूलभद्र त्याग मार्ग ग्रहण करता है । राजा, प्रजा सभी उसे मन्त्री पद ग्रहण करने के लिए आग्रह करते हैं परन्तु बदले हुए मन को कौन मोड़ सकता है । स्थूलभद्र ने वैराग्य मार्ग ग्रहण कर लिया । दृढ़ निश्चयी मूल वस्तुतत्व को समझ लेने वाले अपने निश्चय पर अडिग रहते. हैं । रूपकोषा को जब पता चला कि उसका प्रेमी मन्त्रीपद को छोड़कर त्याग का मार्ग ग्रहण कर रहा है तब उसका उमंग और उत्साह गल गया, जैसे हिमपात से कमल गल जाता है । मगर क्या करती, कोई चारा नहीं था, क्योंकि शुरवीर एवं संकल्प बली व्यक्ति की वाणी हाथी के दांत के समान परिपक्व होने पर ही बाहर निकलती है । वे फिर उसे भीतर नहीं मोड़ सकते । वे कछुए की गर्दन के समान अपनी वाणी को बार-बार बाहर भीतर नहीं करते। कहा भी है-"दति दन्त समानं हि, महतां निर्गतं क्यः ।" परिपक्व वाणी की तुलना परिपक्वावस्था के हाथी दांत से की गई है। बैताल कवि ने मर्द के लक्षण बताते हुए बड़े ही सुन्दर ढंग से अपनी बात . कही है मर्द करे उपकार , मर्द जग में यश लावे । मर्द देत अरु लेत, मर्द खावे औ खिलावे ।। परे मर्द में भीड़ मर्द को मर्द छुड़ावे । मर्द नवावे सीस, मर्द तलवार बजावे ।। सुजान नर जाणों तुम्हें, सुख दुख साथी दर्द के । 'बैताल' कहे विक्रम सुनो, ये लच्छन हैं मर्द के ।। इसके विपरीत चलने वाले का पुरुषों के लिए भी बैताल ने चुभती बात कही है पहर ऊजला झाबा, पाग ऊंची सिर बांधे ।।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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