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________________ 166 आध्यात्मिक आलोक मुझे ऐसा लगता है कि "सठा काल नाश करता है ।" राजा के रूठने पर बचाव का उपाय है, किन्तु काल से बचना कठिन है । हजारों वारन्ट वाले भी राजा की कोप दृष्टि से बच जाते हैं पर काल से कोई नहीं बच सकता। यह सुनकर श्रीयक ने कहा कि महाराज प्रमाण देखकर न्याय करेंगे या न्याय छोड़ देंगे । आपके जीवन पर संकट आया देखकर मैं अपना प्राणोत्सर्ग कर दूंगा । यदि चूक न हो तो महाराज से न्याय की मांग करूंगा । इस तरह श्रीयक इस बात पर अटल रहा कि वह अपने जीते-जी पिता के जीवन पर किसी तरह की आंच नहीं आने देगा। शकटार बुद्धिमान था और आज तक राजा तथा प्रजा दोनों का प्रेम भाजन बना हुआ था जो कि एक असंभव-सी बात है । प्रजा का प्रिय राजा का शत्रु और राजा का प्रिय प्रजा का शत्रु समझा जाता है । शकटार ने श्रीयक से कहा कि तुझ में अभी जवानी का जोश है । जब स्वामी और सेवक के बीच में लड़ाई हो, तो उसका परिणाम क्या निकलेगा ? जो कुछ भी थोड़ी मधुरता है, वह भी मिट जाएगी । यदि लड़ाई में आपसी समझौता हो जाय तो मधुरता रहेगी, परन्तु लड़कर बलात् अधिक भी प्राप्त किया जाय, तो वह लाभदायक नहीं होगा । समझदार व्यक्ति पैसे को महत्व नहीं देकर मानव को महत्व देता है। आज समाज में फैले अनेक झगड़ों का मूल कारण मानव से अधिक धन को महत्व देना ही है । शकटार ने कहा कि राजा से बराबरी दिखाने पर तीन हानियां होंगी(७) स्वामी सेवक सम्बन्ध नहीं रहेगा (२) घृणा बढ़ेगी और मधुरता मिटेगी तथा (8) लोक निन्दा होगी और जीत में भी हार होगी । श्रीयक भी समझदार था । उसने राजा के कोप से बचने का पिताजी से रास्ता पूछा । महामन्त्री ने कहा कि सत्ता बल वाले से अपराध नहीं पूछा जाता । सत्ता से उलझने से कोई लाभ नहीं होता। तन, धन और इज्जत मिट्टी में मिल जाती तथा व्यवहारिक हानियां भी होती हैं । मेरा आयु बल समाप्त हो रहा है अतः इसके लिए घबराना उचित नहीं, यह निश्चय है कि कोई भी प्राणी आयु बल क्षीण हुए बिना नहीं मर सकता। शकटार में सत्संगति से सुसंस्कार थे । अतः वह भयंकर विपत्ति की घड़ी में भी शान्त तथा अडोल बना रहा । उसने धैर्य नहीं खोया और आत्मबल बनाए रखा । उसका जीवन सांसारिकजनों के लिए प्रेरणादायक है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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