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________________ 165 आध्यात्मिक आलोक जो खाने से रोग उत्पन्न करता है । साथ ही कुआहार से मन में अनीति के विचार उठते हैं और मनुष्य अन्य प्राणियों के साथ मैत्री-भाव नहीं रख पाता । गाय-भैंस से दूध लेने वाले इतना अधिक दूध दुह लेते हैं कि उनके बच्चे को भी दूध नहीं क्य पाता | कुआहार वाले व्यक्ति में संग्रह वृत्ति बढ़ जाती तथा कुभावना जागृत होती है। फलाहार अनाहार तथा पत्ती के आहार में भी मनुष्य निर्दोषिता का लक्ष्य रखे, तो अपना जीवन सौम्य बना सकता है। ___आनन्द ने नियम बनाया कि वह आंवले के अतिरिक्त अन्य फलों को रुग्णावस्था छोड़कर ग्रहण नहीं करेगा। इस तरह उसने संसार के अन्य सभी फलों को जो रस एवं माधुर्य युक्त होकर मन को ललचाने वाले होते हैं, त्याग कर दिया । फल त्याग से मन में यह तर्क उठता है कि आखिर इन फलों को कौन खाएगा ? और इनसे मिलने वाले बल एवं पौष्टिकता से मानव-समाज वंचित रह जाएगा । परन्तु मनुष्य को यह सोचना चाहिए कि संसार कुछ छोटा तो नहीं है और सब के सब कोई एक ही फल तो नहीं छोड़ेंगे । फिर वस्तु के लिए उठने वाला संघर्ष त्याग से ही तो कम होगा | आहार-विहार ठीक रखने वाला विषम परिस्थितियों में भी दिमाग संतुलित रख पाता है । हानि-लाभ और संयोग-वियोग में वह आतुर, अधीर नहीं होता और मन तथा मस्तिष्क को संतुलित रखता है। अब वररुचि की जो बात चल रही है। उसे देखिये पं. वररुचि के प्रयत्न से महामन्त्री शकटार सम्राट नन्द के कोप-भाजन हो गए और उनके आमोद-प्रमोदमय जीवन में अकस्मात् विपदा की काली घटा घिर आयी . हाथी पर सवारी करने वाला पैदल चलने की स्थिति में आ गया । महाराज उसकी और कड़ी दृष्टि से देखने लगे क्योंकि वररुचि ने महाराज को जंचा दिया कि महामन्त्री राज्य का तख्ता उलटने के लिए अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण करवा रहा है। . राजा वो चर चक्षु होता है और चरों ने इसे सही पाया कि महामन्त्री की ओर से अस्त्र-शस्त्र बनवाए जा रहे हैं । फिर तो महामंत्री की एक भी बात नहीं सुनी गयी और उन्हें राज्य मन्त्री पद से च्युत कर कड़ी सजा का पात्र माना गया । वररुचि को अपमान का बदला चुकाने का स्वर्ण अवसर हाथ लग गया। . महामन्त्री शकटार राजा के सामने से हटकर गंभीर चिन्तन करने लगा, ताकि परिवार की रक्षा का उपाय कर सके | उसने पुत्र श्रीयक को बुलाकर कहा कि आज तुमको एक मुद्दे की बात कहनी है । आज तक नन्द की कृपा से हमारा घर फूला-फ़ला है। अब मेरा तन तो राख की ढेरी बनकर उनके चरणों में पड़ जावेगा, तुम अपनी चिन्ता करो । मेरे चलते पारिवारिक जीवन सुखमय हो, यही कामना है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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