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________________ [ २५ ] साधना की ज्योति संसार के सभी पदार्थ मनुष्य के लिए अनुकूल या प्रतिकूल निमित बनकर कार्य करते हैं । जो मनुष्य अज्ञान में सोए हों उनके लिए ये वस्तुएं, अधःपतन का कारण बन जाती हैं । पर जिनके हदय में ज्ञानदीप का प्रकाश फैला हुआ है, उन्हें ये पदार्थ प्रभावित नहीं कर सकते । जागृत मनुष्य इन पतन के कारणों को प्रभावहीन कर देते हैं। द्रव्य, क्षेत्र और काल की तरह भाव भी मानव के भावों को जागृत करने के कारण बनते हैं, किन्तु 'पर' सम्बन्धी भाव में जैसा अपना अनुकूल प्रतिकूल भाव मिलेगा, उसी के अनुसार परिणति होगी। अजाग्रत-मानव पानी की धार में तिनके के समान भावना के प्रवाह में बह जाते हैं, जबकि जाग्रत मानव मछली के समान ऊपर की ओर तैर जाते हैं । यदि छोटी मछली हो, तो भी धारा में ऊपर की ओर चढ़ती है, उसी प्रकार छोटी साधना वाला मानव भी हमेशा ऊर्ध्वगामी होता है । तात्पर्य यह है कि पुरुषार्थ हीन तिनका बह जाता है और कर्त्तव्य शील मछली विपरीत परिस्थितियों का भी सामना कर लेती " तृणवत् तुच्छ पुरुषार्थ हीन मनुष्य जमाने की प्रतिकूल धारा में बह चलेगा वह चूंघरू की साधारण ध्वनि और रूप सौन्दर्य के साधारण झोंके में बह जायगा; किन्तु गंभीर मन वाला, मेरु के समान निश्चल भाव से, भयंकर से भंयकर प्रतिकूल परिस्थिति में भी अडिग रहेगा। मछली की तरह स्वाभाविक शक्ति मनुष्य में है, परन्तु कर्मशीलता चाहिये । विवेक शक्ति पर पर्दा पड़ने से मानव तिनके की तरह बह जाता है किन्तु जो ज्ञानी होकर स्वयं जागृत है, जड़ पदार्थ उसे अपनी धारा में नहीं बहा सकते । ज्ञानी मनुष्य उनको अपने रंग में रंग लेते हैं। ये भौतिक तुच्छ वस्तुएं, साधारण मनुष्य के मन को हिलाकर अशांत कर देती है, पर ज्ञानी पर इनका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता। उल्टे वह इन्हीं पर अपना प्रभाव जमा लेता है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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