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________________ 125 आध्यात्मिक आलोक पुत्र की अपेक्षा पुत्रियों में सुशिक्षा और सुसंस्कार इसलिये आवश्यक है कि उन्हें अपरिचित घरों में जाना तथा वहीं जीवनपर्यन्त रहना है । बालक किसी से नहीं 'बनाव' होने पर अपने को स्थानान्तरित कर सकता है किन्तु लड़कियां दूसरे घर में जाती हैं तो यह बल लेकर जाती हैं कि मैं घर के लोगों को अपना बना लूंगी । लड़की यदि सुशीला और संस्कारवती होगी तो परिवार को प्रेम के बल पर अविभक्त और अखण्ड रख सकेगी । लड़की में यदि संस्कार का निर्माण नहीं किया गया है तो घर को बिखेर कर वह प्रतिष्ठा को धूल में मिला देगी । अतः लड़की में ये उदार संस्कार जमाने आवश्यक हैं कि वह जहां भी रहे उसको अपना घर समझे और इस तरह पितृ एवं पति कुल दोनों को सुन्दर तथा स्वर्ग तुल्य बना दे। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह के बाद लड़की पराई हो जाती है। उसको पिता का घर छोड़ कर एक नया घर बसाना पड़ता है। इसके लिये आवश्यक है कि वह उत्तम संस्कार वाली और मृदुभाषिणी हो। साथ ही सबके साथ मिल कर चलने वाली हो। आज की माताएं बालिका से काम तो बहुत लेती हैं, किन्तु उसे सुसंस्कार सम्पन्न बनाने का यत्न नहीं करती। वह दहेज में पुत्री को बहुत सारा धन देगी मगर ऐसी वस्तु गांठ बांध कर नहीं देती जो जीवन भर काम आवे। जिस लड़की को श्रद्धा, प्रेम, सुशीलता, सदाचार, प्रभु-भक्ति और मृदु-व्यवहार की गांठ बांध दी जाती है, वह असली सम्पत्ति लेकर पराये घर जाती है । __ महामन्त्री की कन्याओं की बुद्धि के चमत्कार से सभी सभासद प्रभावित हो गये। लोग इस रहस्य से अपरिचित थे कि ये लड़कियां क्रमशः एक, दो, तीन बार सुन लेने से किसी भी वस्तु को कण्ठस्थ कर लेती हैं। इस राजकीय अपमान से शर्मिन्दा होकर वररुचि के हृदय में प्रतिहिंसा की ज्वाला धधक उठी उसने इसका बदला लेने का निश्चय किया । कुछ दिन तक तो समय की प्रतीक्षा करता रहा कि अवसर पाकर इस अपमान का प्रतिशोध लिया जाये। रहिमन कवि ने ठीक ही कहा है रहिमन चुप हो बैठिये, देखी दिनन को फेर । जब नीके वे दिन आइहें, बनत न लगिहें देर ।। वैर का बदला वैर से लेना कितना भयंकर है, इसके लिये निम्न उदाहरण पर्याप्त है। एक आदमी का अपने किसी गांववासी से वैर था । एक दिन सहसा ही वैरी से मुलाकात हो गयी और उसने बदला लेना चाहा । मन में कुभावनाओं के आने से जब कुभावनाएं बहत बलवती हो जाती हैं, तो अन्य अंग, प्रत्यंग भी उसको सहकार देने लगते हैं। वैरी को सामने पाकर उसकी प्रतिहिंसा की भावना उत्तेजित हो 'गई और वहां उसे बदला लेने के लिये पत्थर, लकड़ी या अन्य ऐसी कोई वस्तु नहीं
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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