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________________ आध्यात्मिक आलोक 115 री टूटी, ये सब बातें झूठी"। राजा ने गड़रिये की बातें सुन ली और तत्काल आदमी को भेजकर उसको बुलवाया एवं पूछा-"क्यों रे तूने लंगड़ी बकरी से क्या कहा था ? सच-सच बता हम तेरा अपराध माफ करते हैं।" यह सुनकर गड़रिया बोला कि महाराज ! आपके वजीर ने जो बातें कही हैं वे केवल आपको प्रसन्न करने के लिये कही हैं। इसलिये मैंने कहा कि ये सब बातें झूठी हैं। इस पर राजा बोला कि तुम अपनी राय बताओ। यह सुनकर गड़रिया बोला कि महाराज ! सूर्य की रोशनी उसके काम की है, जिसके आंख में रोशनी है। इसलिये आंख की रोशनी सबसे अच्छी। दूध गौ का नहीं, मां का अच्छा है, जिसने मां का दूध नहीं पिया उसके लिये गौ का दूध क्या करेगा। महाराज पुत्र राजा का नहीं, अपना अच्छा, क्योंकि अपना पुत्र नहीं होने से राजा का पुत्र हमारे किस काम का ? इसलिये पुत्र अपना अच्छा कहना चाहिये। चौथी बात मन्त्री ने भाई का बल अच्छा बतलाया, किन्तु जंगल में अकेले में कोई शत्रु मिल गया तो वहां भाई का बल क्या काम देगा। जो अपनी भुजा में बल होगा तो वही काम देगा । इसलिये बल अपनी भुजा का अच्छा। पवें में फूल गुलाब का अच्छा बतलाया किन्तु गुलाब का फूल तो श्रीमन्तों के नाज-नखरे तथा शौक के लिये ही काम आता है, परन्तु कपास का फूल तो अमीर-गरीब सबकी लाज रखता है। इसलिये कपास का फूल सबसे अच्छा है। यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और गड़रिये को ईनाम देकर विदा किया। यह है भारत की प्राचीन दृष्टि। आनन्द ने भी मात्र कपास के वस्त्र की मर्यादा की। __ आनन्द के समान आप लोग भी वस्त्र की मर्यादा रखें, यह आवश्यक है। पहले भारतवर्ष की जनसंख्या कम थी तथा आकर्षण के इतने साधन भी नहीं थे। जबकि आज जनसंख्या के साथ भौतिक आकर्षण भी बढ़ गये हैं। आज निम्न श्रेणी के लोगों तथा गरीबों ने भी अपनी-अपनी आवश्यकताएं बढ़ाली हैं- फलतः असन्तोष भी बढ़ गया है। आज गरीबों का मन अमीरों की ओर लगा है, पर वे भूलकर भी गरीबों की ओर दृष्टि नहीं डालते । यदि आनन्द के समान सभी ‘अपनी-अपनी आवश्यकताएं कम करलें तो अनेक संकट टल जावेंगे तथा आनन्द एवं शान्ति की लहर सब ओर दौड़ जायेगी। साथ ही वैर-विरोध एवं संघर्ष की मात्रा भी कम पड़ जायेगी। शासन का खर्च भी कम हो जायेगा और लोग सभी दुःखों से मुक्त हो जायेंगे। वस्तुतः मर्यादित जीवन में शान्ति है तथा अमर्यादित जीवन में अशान्ति। पण्डित वररुचि के नित्य मुहर पाने से, शकटार के हृदय पर विपरीत प्रभाव पड़ा। खजानां खाली होते देखकर शकटार को दुःख हुआ। उन्होंने राजा को सावधान करने की सोची।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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