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________________ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि इस जगत में संयम धारण करने के लिए प्रेरणाएं उपलब्ध हैं। उनसे प्रेरित होकर व्यक्ति संयम की ओर मुड़ता है। उस व्यक्ति के लिए उत्तराध्ययन का शिक्षण है कि स्व को जीतना ही परम विजय है (36) । इसलिए यह कहा गया है कि अंतरंग राग-द्वेष से ही युद्ध किया जाना चाहिए, क्योंकि अपनी राग-द्वेषात्मक वृत्ति को जीतकर ही व्यक्ति मानसिक तनावात्मक दुःख से मुक्त हो सकता है (37)। वस्तुओं और व्यक्तियों में आसक्ति का त्याग इस जीत के लिए आवश्यक शर्त है (43)। उत्तराध्ययन का शिक्षण है कि इन्द्रियों के विषय प्रासक्त मन प्य के लिए दुःख का कारण होते हैं। अतः मनुष्यों के लिए संयम रूपी धम आश्रय गृह है, सहारा है, रक्षा स्थल है तथा उत्तम शरण है (69)। सयम की कला सीखने के लिए ब्यक्ति को विनयवान होना अत्यन्त आवश्यक है। उत्तराध्ययन का कहना है कि जो गुरु की सेवा करने वाला है, जो उसकी प्राज्ञा और उसके उपदेश का पालन करने वाला है, जो शरीर के विभिन्न अंगों की चेष्टा से तथा चेहरे के रंग-ढंग से उसके आन्तरिक विचार को समझ लेता है, वह विनीत कहा जाता है। विनयवान व्यक्ति गुरु के कठोर अनुशासन को भी हितकारी मानते हैं (8)। ___ संयम धारण करने के लिए हिंसा का त्याग किया जाना चाहिए । प्रत्येक जीव के प्राणों को अपने समान प्रिय जानकर उसका घात नहीं करना चाहिए (30)। जो प्राणियों का रक्षक होता है, वह सम्यक् प्रवृत्ति वाला कहा जाता है (33) । सामायिक, प्रायश्चित्त, मैत्रीभाव, प्रार्जवता, वीतरागता का अभ्यास, चित्त-निरोध तथा चयनिका ] [axi
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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