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________________ [ १३ ] हरिणी को मारा जिसके तड़पते हुए गर्भ को देख कर राजा का हृदय चीत्कार कर उठा। वह विरक्त चित्त से आगे बढ़ा तो शिला पर एक मुनिराज मिले जिनसे प्रतिवोध पाकर उसने सम्यक्त्व मूल श्रावक धर्म स्वीकार किया। तत्पश्चात वह धर्माराधन करता हुआ राज्य पालन करने लगा। उसने मुद्रिका में मुनिसुत्रत स्वामी की मूर्ति बनवा कर अन्य को नमस्कार न करने का व्रत पालन किया। अवन्तीपति सीहोदर को जिसकी अधीनता में वह था, नमस्कार करते समय जिनवन्दन का ही अध्यवसाय रखता था। किसी चुगलखोर शत्रु ने सीहोदर के कान भर दिये जिससे वह कुपित होकर दशपुर पर चढ़ाई करके बनजंघ को मारने के लिये ससैन्य अवन्ती से निकल पड़ा। इसी बीच एक व्यक्ति शीघ्रतापूर्वक बनजंघ से आकर मिला और उसे सीहोदर के आक्रमण से अवगत कराते हुए अपना परिचय इस प्रकार दिया कि मैं कुण्डलपुर का अधिवासी विजय नामक व्यापारी हूँ। मेरे माता-पिता शुद्ध श्रावक हैं, मैने उज्जयिनी में आकर प्रचुर द्रव्य कमाया पर अनंगलता नामक वेश्या से आसक्त होकर सव कुछ खो बैठा। एक दिन मैं वेश्या के कथन से रानी के कुण्डल चुराने के लिये राजमहल में प्रविष्ट हुआ और छिप कर खड़ा हो गया-मैं इस फिराक में था कि राजा सो जाय तो रानी के कुण्डल हस्तगत करूं। पर विचारमग्न राजा को नींद न आने से रानी ने पूछा तो राजा ने कहा मैं दशपुर के राजा वनजंघ को मारूंगा जो मुझे प्रणाम नहीं करता ! मेरे मन मे स्वधर्मी बन्धु को चेतावनी देकर उपकृत करने का विचार आया और मैं वहाँ से आपके पास आकर गुप्त खवर दे रहा हूं, आप अपनी रक्षा का यथोचित उपाय करें। राजा ने
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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