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________________ [ ७ ] से सीता को प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर सैन्य सहित रवाने हुआ। मार्ग में विदर्भा नगरी में जब पहुंचा तो उसे वहां के दृश्यों को देखकर ईहा पोह करते हुए जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसे अपनी ही सहोदरा सीता के प्रति लब्ध होने का बड़ा पश्चाताप हुआ और वैराग्य पूर्वक ससैन्य वापस रथनेउरपुर पहुंचा। पिता चन्द्रगति ने उसे एकान्त में लौट कर आने का कारण पूछा। भामण्डल ने कहाहे तात ! मैं पूर्व जन्म मे राजकुमार अहिमंडल था और मैने निर्लज्जतावश ब्राह्मणी का अपहरण किया था। मैं मर कर जनक राजा का पुत्र हुआ, सीता मेरी सहोदरा है। पूर्व जन्म के वैर विशेप से देव ने मेरा अपहरण किया और प्रारब्धवश आपने मुझे अपना पुत्र किया। हाय ! मुझ अज्ञानी ने अपनी भगिनी की वांछा की, यही मेरा वृतान्त है। विद्याधर चन्द्रगति इस वृतान्त को श्रवण कर विरक्त चित्त से भामण्डल को राज्याभिषिक्त कर सब के साथ, अयोध्या के उद्यान में आया। मुनिराज को वंदनकर चन्द्रगति ने उनके पास दीक्षा ले ली। भामण्डल ने याचकों को प्रचुर दान दिया जिससे वे जनक-वैदेही के नन्दन भामण्डल का यशोगान करने लगे। महलों मे सोयी हुई सीता ने जब भाटों द्वारा जनक के पुत्र की विरुदावली सुनी तो उसने सोचा-यह कौन जनक का पुत्र १ मेरे भाई को तो जन्म होते ही कोई अपहरण कर ले गया था । इस प्रकार विचार करते हुए राम के साथ प्रातःकाल उद्यान मे गयी। महाराजा दशरथ भी आये और उन्होने चन्द्रगति मुनि को देखकर ज्ञानी गुरु से सारा वृतान्त ज्ञात किया। सब लोग जनक-पुत्र भामण्डल का परिचय पाकर प्रसन्न हुए। भामण्डल के हर्ष का तो कहना ही क्या । रामने स्वागतपूर्वक भामण्डल
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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